Monday, February 23, 2009
जय हो
इस बार हम भारतीयों ने इतिहास रचा है। हमारी फ़िल्म 'स्लमडाग मिलेनियर' ऑस्कर के दस वर्गों में नामांकित हुई और आठ ऑस्कर अपनी झोली में डाल लिए। मुंबई की झोपड़पट्टी में रहने वाले लड़के के करोड़पति बनने की कहानी पर बनी 'स्लमडाग' को सर्वश्रेष्ठ फिल्म और डैनी बोयल को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार मिला। संगीतकार एआर रहमान ने सर्वश्रेष्ठ मौलिक संगीत [ओरिजिनल स्कोर] और 'जय हो' गीत के लिए सर्वश्रेष्ठ मौलिक गीत का पुरस्कार जीता। बात यहीं ख़त्म नहीं होती, 'स्लमडाग' के अलावा भी समारोह में भारतीय उपस्थिति दर्ज कराई 'स्माइल पिंकी' ने। होंठ कटा होने के कारण सामाजिक बहिष्कार की शिकार उत्तरप्रदेश की नन्हीं सी लड़की पिंकी की कहानी के लिए मेगान मिलान ने सर्वश्रेष्ठ डाक्यूमेंटरी [लघु] का आस्कर पुरस्कार जीता। रहमान हम भारतीयों का नया गौरव हैं, अपनी दिलकश धुनों से देश-विदेश के संगीत रसिकों का मनोरंजन करने वाले रहमान उर्फ एएस दिलीप कुमार का जन्म चेन्नई में छह जनवरी 1966 को हुआ। उन्होंने अस्सी के दशक में इस्लाम कबूल करने के बाद नाम बदल कर अल्लाह रक्खा रहमान रख लिया। चार बार राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके रहमान को पद्मश्री से नवाजा जा चुका है। उन्हें फिल्मफेयर में 11 पुरस्कार मिल चुके हैं। कामयाबी बड़ी है, हालांकि इससे पहले भानु अथैया को रिचर्ड एटनबरो की 1983 में बनी फिल्म 'गांधी' में कास्ट्यूम डिजाइन और सत्यजीत रे [1992] को सिनेमा में आजीवन योगदान के लिए विशेष आस्कर से नवाजा गया था। .....अब तस्वीर के दूसरे रुख पर भी चर्चा कर ली जाए। miss universe और miss world के एक के बाद एक खिताब हमारी झोली में आए तो पहली बार हमारी आँख खुली कि हम लगभग एक अरब की आबादी वाले बडे देश हैं और हमारे बड़े बाज़ार पर मल्टी नेशनल कम्पनिओं की नज़र पहुँच चुकी है। हम आईटी में विश्व शक्ति बन जायें तो किसी को परवाह नहीं पर हमारी गरीबी खूब ध्यान बटाती है। ताज महल हो या सारनाथ, विदेशी टूरिस्टों के कैमरे का फोकस हमारे शहरों की गन्दगी, बदहाली और गरीब लोगों पर होता है। ऑस्कर में हमारी फ़िल्म की कामयाबी की ख़बर मिली, तब मैं सारनाथ में थी। आस्ट्रेलियन जैक मिलिनी से मैंने पूछ लिया, छूटते ही जवाब मिला, मुंबई की झोपड़पट्टी वाली फ़िल्म। वो जमाल मालिक को जानते थे, वही गरीब जमाल जो टेलीविजन शो से करोड़पति बन जाता है। फ़िल्म में धर्म के नाम पर हिंसा, भिक्षा और वैश्यावृत्ति सब-कुछ है। कहाँ नही है यह सब, पर हमारी कमियां विदेशों में बिकती हैं और गाँधी जैसी फ़िल्म महज एक ऑस्कर ही जीत पाती है। समझ में नहीं आता कि हम भारतीय जश्न मनाएं या गम।
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3 comments:
खुशी यही है कि रहमान को भी ऑस्कर मिला। सच यही है कि मैं भी अभी तक तय नहीं कर पाया हूं कि खुशी मानू या नहीं। उत्तमा जी यदि आपने इसी विषय पर इससे भी बेहतर फिल्म बनाई होती तो ऑस्कर तक का सफर भी न कर पाती।
इस बदलती हुई दुनिया का खुदा कोई नही ...सस्ते दामों में हर रोज ख़ुद बिकते हैं
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
khushiyo per jashn manaiye
OS. ki aas to sakaar hui
locha to yaha her kone mai hai
kis- kis ka rona roye
SO cheer up
Jai ho
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