Thursday, April 30, 2009

यह कठपुतलियाँ

क्या होगा इस लोकतंत्र का विधायिका अपने कर्तव्य भूल गई, कानून में कमियों को दूर कराने की बजाये उसका लाभ उठाया जाने लगा तो न्याय पालिका ने दखल दिया लेकिन काट ढूँढ ली गई है, बाहुबलिओं ने अपनी जगह पत्नी या और नजदीकी रिश्तेदारों को चुनाव के मैदान में उतार दिया है सीवान में मोहम्मद शहाबुद्दीन की बेगम हिना सहेबा हैं तो सुपौल में पप्पू यादव की रंजीता रंजन यहीं नहीं, पप्पू की सास शान्ति प्रिया पूर्णिया से उतरी हैं सूरजभान ने भी अपनी पत्नी वीणा सिंह के कंधे पर बन्दूक रखकर निशाना साधा है आनंद मोहन कई बार सांसद रहे, इस बार सजायाफ्ता होने पर मन मारकर बैठे हैं पर उनकी पत्नी लवली आनंद संसद का रास्ता तय करने की जुगत भिड़ा रही हैं मुख्तार अंसारी को लगा कि उनकी राह भी आसान नहीं तो पत्नी तो बनारस से पर्चा भरवा दिया हालांकि वो फिलहाल खुशनसीब निकले और चुनाव लड़ रहे हैं ख़ास मगर दुर्भाग्य की बात ये है कि इन्हें बसपा, कांग्रेस, लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल जैसी बड़ी पार्टीओं ने टिकट दिया है क्या होने जा रहा है देश की संसद में? पंचायतों और लोकतंत्र की अन्य छोटी इकाइयों की बीमारी लोकसभा में पहुँचने जा रही है? पंचायतों में आरक्षण लागू हुआ तो नेता जी ने अपनी घूंघट वाली पत्नी को चुनाव लड़ा दिया और नेतागिरी उनकी अपनी चल रही है ख़ुद प्रधान और ब्लाक प्रमुख पति कहला कर दबंगई चला रहे हैं यहाँ तक कि, बैठकों में बैठने का भी जैसे हक़ हासिल कर लिया है जो चाहते हैं, करते हैं और कागज़ पर अंगूठे की छाप भी लगाने से नहीं हिचकते लोकसभा में इतना तो फिलहाल सम्भव नहीं, पर माफिया सरकारों और सियासी दलों पर तो दबाव बनाये रखने में तो कामयाब रहेंगे हीइलाहाबाद में माफिया पर सख्ती से वाह-वाही बटोरने वाली उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को क्यों मुख्तार पर भरोसा करना पड़ा? माफिया को लेकर समाजवादी पार्टी पर आरोप लगाने वाली कांग्रेस ने क्यों बिहार में रंजीता को टिकट दिया? अपराध मुक्ति का नारा लगाने वाली भाजपा क्यों रमा कान्त यादव पर भरोसा करती है? आख़िर क्यों?

9 comments:

Hari Joshi said...

इन सब विसंगतियों से सिर्फ आपका वोट लड़ सकता है लेकिन आप बुद्धिजीवियों के कैंपस में रहती हैं वहीं का मतदान प्रतिशत केवल अठारह रहा है।

Udan Tashtari said...

वोट की ताकत से इनसे लडिये.

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

डॉक्टर उत्तमा जी..
आपने जो मुद्दा उठाया है इसका एक ही हल है वो है मतदान...
देश के उज्जवल भविष्य के लिए हमें ही ५४३ चुन्दिदा चहरे विश्व जगत के सामने प्रस्तुत करने होगें....
जिसमे अभी तक के मतदान प्रतिशता को देखकर काफी अफसोस हो रहा है....

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

डॉक्टर उत्तमा जी..
आपने जो मुद्दा उठाया है इसका एक ही हल है वो है मतदान...
देश के उज्जवल भविष्य के लिए हमें ही ५४३ चुन्दिदा चहरे विश्व जगत के सामने प्रस्तुत करने होगें....
जिसमे अभी तक के मतदान प्रतिशता को देखकर काफी अफसोस हो रहा है....

'MASROOR' said...

एक पुरानी कहावत है..

सिर्फ ज़ुल्म करने वाला ज़ालिम नहीं होता... बल्कि ज़ुल्म होता देख खामोश रहने वाला भी ज़ालिम होता है..

इस तरह के दागदार दामन लोगों की पॉलीटिक्स में एंट्री हमारी उसी खामोशी की सज़ा है...

'MASROOR' said...

सिर्फ ज़ुल्म करने वाला ज़ालिम नहीं होता बल्कि ज़ुल्म होता देख खामोश रहने वाला भी ज़ालिम होता है...

इस तरह के दाग़दार दामन तत्वों की सियासत में एंट्री हमारी उसी ख़ामोशी की सज़ा है...

लेहाज़ा सर झुका कर इस को क़ुबूल किया जाए..

P.N. Subramanian said...

बस सभी ने कह ही दिया है. मतदान और मतदाताओं को जागरूक बनाकर ही हम अपना भविष्य संवार पाएंगे

Unknown said...

क्योंकि जनता दिलो जान से अपनी बिरादरी और मजहब के माफिया से प्यार करती है।...और हर पढ़े लिखे आदमी के भीतर एक बनैला माफिया रहता है।

Urmi said...

मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! आपने बहुत ही सुंदर लिखा है! हर एक व्यक्ति को चाहिए कि वोट दे और देश कि तरक्की के बारे में सोचे!