Thursday, May 21, 2009

उम्मीद की किरण

चलो किस्मत से ही सही, देश की सबसे बड़ी पंचायत में महिलाओं की नुमाइंदगी बढ़ ही गई हालाँकि प्रमुख दलों ने उनकी जमकर अनदेखी की। कांग्रेस हो या भाजपा, किसी भी बड़े दल ने 10 फीसदी से ज्यादा महिलाओं को टिकट नहीं दिया था, जबकि ये दो दल तो उनके लिए 33 फीसदी आरक्षण की हिमायत करते हैं। कुल प्रत्याशिओं में सात प्रतिशत महिलाएं थीं। भाजपा ने 44, कांग्रेस ने 43, बसपा ने 28 और समाजवादी पार्टी ने 15 महिलाओं को चुनावी मैदान में उतारा था पर किस्मत भारी पड़ी। 59 महिलाएं पंद्रहवीं लोकसभा की सदस्य बनी हैं, जो अब तक का एक रिकॉर्ड है। इन महिला सांसदों में 17 वो हैं जिनकी उम्र 40 साल से कम है। सर्वाधिक 13 महिला सांसद उत्तर प्रदेश से हैं और सबसे ज्यादा 23 कांग्रेस की। देश की पहली लोकसभा में 4.4 परसेंट महिलाएं थीं जो अब बढ़कर 13.80 का आंकडा छू रही हैं। यह जरूर थोडी निराशा की बात है कि, जीत का यह मुकाम महिलाएं ज्यादातर पार्टी के नामों के सहारे ही पा सकी क्योंकि 200 ने निर्दलीय के रूप में उतरने की हिम्मत की थी पर जीत मिली सिर्फ़ नौ महिला उम्मीदवारों को। वैसे, यह चुनाव महिलाओं के भी नाम रहे। प्रियंका गाँधी ने अपने भाई राहुल और माँ सोनिया की सीट पर प्रचार का जिम्मा सम्हाल कर उन्हें देश भर में अपनी पार्टी का अभियान चलने के लिए मुक्त कर दिया, नतीजे चाहें जो भी रहें हो पर लाल कृष्ण आडवानी इसलिए गाँधी नगर की चिंता से मुक्त रहे कि बेटी प्रतिभा वहां कमान सम्हाले हुई थीं। महाराष्ट्र में सुप्रिया सुले ने अपने पिता शरद पवार का बोझ कम किया तो आन्ध्र प्रदेश में प्रजा राज्यम पार्टी के सुपरस्टार अध्यक्ष चिरंजीवी का काम बेटी सुष्मिता ने हलका किया। महाराष्ट्र में ही मरहूम सुनील दत्त की बेटी प्रिया अपनी पार्टी कांग्रेस का थोड़ा-बहुत काम अपने कन्धों पर लिए रहीं। अब नज़र नई सरकार पर है, यूपीए के बड़े घटक तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने अपने गठबंधन की पहली बैठक में 33 फीसदी महिला आरक्षण का मुद्दा उठाकर उम्मीद जगाई है। महिला आरक्षण की प्रबल विरोधी समाजवादी पार्टी, राजद और वाम दल चुनावी नतीजों से सकते में हैं। महिला सोनिया गाँधी की ही अगुवाई वाली कांग्रेस मजबूत हालत में है। सपा और राजद साथ हैं पर बेहद कमजोर। एक और विरोधी लोक जनशक्ति पार्टी के राम विलास पासवान बुरी मात के बाद अपने बिल में ख़ुद को कैद किए हुए हैं। मतलब, सब-कुछ अनुकूल है। शायद महिला आरक्षण के दिन अब आने वाले हैं।

19 comments:

Asha Joglekar said...

यह एक अच्छी शुरुवात है ।

श्यामल सुमन said...

आपकी चिन्ता जायज है।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मातृ शक्ति की जय हो।

नदीम अख़्तर said...

आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है। आपकी चिंता भी जायज़ है, लेकिन मेरी एक बिन्दू पर आपत्ति है। मैं सिर्फ एक सवाल पूछना चाहता हूं कि क्या महिलाओं को सहानुभूति वोट चाहिए। क्या महिलाएं अच्छा काम करके समाज में अपनी पहचान बनाने के बाद वोट मांगने के लिए नहीं उतर सकती मैदान में। समस्या यह है कि अच्छा काम करने वाली महिला नेताओं की आज समाज में कमी है। मैंने कई ऐसी महिला नेत्रियों को देखा है, जो अन्य पुरुष नेताओं की ही तरह खाओ-पकाओ में जुटी रहती हैं। अगर महिलाएं भी भ्रष्ट आचरण प्रस्तुत करेंगी, तो उन्हें भी खारिज कर दिया जायेगा अन्य पुरुष नेताओं की तरह। महिलाओं को चाहिए कि पहले वह समाज में अच्छा काम करें और हो सके तो वोट की राजनीति में आने से पांच साल पहले अपनी ज़मीन तैयार करें। न कि सहानुभूति के तहत महिला होने का वास्ता देकर आ जायें।

Alok Nandan said...

आलेख की गूंज अच्छी है.....हालांकि किसी भी तरह के आरक्षण को लेकर मन में हमेशा संदेह रहा है.....वह दिन कब आएगा जब बिना आरक्षण के ही महिला और पुरुषों के बीच में व्यवस्था में भेद की दीवार समाप्त हो जाएगी....लोकसभा में महिलाओं की इस भागीदारी के लिए फिलहाल आपको बधाई....

रावेंद्रकुमार रवि said...

निश्चित रूप से यह अनुकूलता बढ़ती ही रहेगी!

ओमकार चौधरी said...

तस्वीर बदल रही है. अभी और बदलनी है. जागरूकता जैसे जैसे बढेगी, हालात निश्चय ही बदलेंगे. देश की पांच पार्टियों की अध्यक्ष इस वक्त महिला हैं. लेकिन फिर भी महिलाओं की सहभागिता उतनी नहीं है, जितनी होनी चाहिए. अच्छे लेख के लिए बधाई

Pramendra Pratap Singh said...

आखिर महिलाएँ महिलाओं को वोट क्‍यो नही देती है ?

Chaaryaar said...

yu hi koi rasta nain deta.
lekin yah bhi sach hai ki raste roke nahin ja sakate.
justice Markandey Katju ne...ghar men chai se rahne ka rasta sujhaya hai, ise bhi dhyan dijiye.
mahilayen apana rasta bana lengi.

हिन्दी के लिक्खाड़ said...

wastav me ummeed ki kiran

vijayshankarpat said...

Aapka Blog Padha. Aachha Laga. Mai Bhi BHU Ka Chhatra 78-80 bach me Math PG Me Raha Huuen.

Yah Ek Achachhi Suruaat Hai. Ab Unhe Aadhi Aabadi bhi to Kahate hain. MP Mahilaye agar Ekjut Hokar rahen,Aur Parti Ke dayare Se Upar jakar Sonche to nischit Tour per Mahilayen Soshit-pirit na Rahengi aur Kendra Sarkar Me Apani baten Manva sakengi.

vijay shankar
hindustan patna
09304841877
biharibol.blogspot.com/

vijayshankarpat said...

Aapka Blog Padha. Aachha Laga. Mai Bhi BHU Ka Chhatra 78-80 bach me Math PG Me Raha Huuen.

Yah Ek Achachhi Suruaat Hai. Ab Unhe Aadhi Aabadi bhi to Kahate hain. MP Mahilaye agar Ekjut Hokar rahen,Aur Parti Ke dayare Se Upar jakar Sonche to nischit Tour per Mahilayen Soshit-pirit na Rahengi aur Kendra Sarkar Me Apani baten Manva sakengi.

vijay shankar
hindustan patna
09304841877
biharibol.blogspot.com/

sushant jha said...

बिल्कुल बदलने वाले हैं हालात...और महिलाएं भले ही तादाद में कम हों लेकिन वो कई महत्वपूर्ण पार्टियों की कमान संभाल रही है, देखिए आगे वो जरुर ज्यादा संख्या मे सामने आएंगी।

Vinay said...

विचारपरक लेख

दिगम्बर नासवा said...

आपकी बात में दम है.............धीरे धीरे महिलाओं का जोर बढेगा और ये अच्छी शुरुआत है............

Himanshu Pandey said...

निश्चय ही महिलाओं की उपस्थिति से देश की संसद गौरवान्वित होगी । देश की संसद में महिलाऒं का न्यूनतम प्रतिनिधित्व चिन्ताजनक था । उम्मीद की जानी चाहिये कि दिन ब दिन स्थिति सुधरेगी और सर्वोच्च सदन में नारी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सकेगा । धन्यवाद ।

अजित वडनेरकर said...

टालने से लंबे समय तक टलती ज़रूर हैं पर इस बीच व्यवस्था के कई चेहरे बनकाब हो चुकते हैं।

उम्मीद न सिर्फ कायम है, बल्कि फैसले के दिन नज़दीक हैं।

somadri said...

definetely a good sign for INDIAN DEMOCRACY. women are sliding slowly in this field

www.som-ras.blogspot.com

Unknown said...

महिलाओं को संसद में प्रतिनिधित्‍व देने मात्र से देश की आम महिलाओं की स्थिति में कोई फर्क पड़ने वाला नहीं. संसद में वे ही महिलएं आ सकती हैं, जिन्‍हें कोई दल उम्‍मीदवार बनाए और जो करोडपति हों और चुनाव में धन फुंकने को तैयार हों. हमें नहीं भूलना चाहिए कि इस देश्‍ा में इंदिरा गांधी नाम की महिला काफी समय तक प्रधान मंत्री रह चुकी हैं.
संसद में काई भी जाए, इसे बहस का मुद्दा बनाने से बेहतर है कि देश की आम महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए वहां सार्थक बहस कराना और उसके परिणामों को देश में लागू कराना.
महिलाओं का प्रतिनित्‍व एक शगूफा मात्र है. इससे हमें ज्‍यादा आशा नहीं करानी चाहिए. उत्‍तर प्रदेश में दलित महिला के मुख्‍यमंत्री होने से ना तो दलितों की दशा में कोई बदलाव हुआ है और ना ही महिलाओं में.
मूल सवाल यही है कि जमीनी हकीकत कैसे बदले?