Wednesday, April 7, 2010
सानिया को तो बख्शिए
विवाद निपटा, अब तो छोड़िए सियासत और अपने भारत की टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा के निकाह का जश्न मनाइये। खुश होइये कि सानिया बेशक पाकिस्तान की बहू बनने जा रही हैं लेकिन खेलती रहेंगी अपने वतन के लिए और तो और... वो पाकिस्तान में रहेंगी भी नहीं। आम भारतीय हैं हम, क्यों सियासतदां बनने का दुष्प्रयास कर रहे थे। सिने स्टार रीना रॉय ने भी सानिया के भावी क्रिकेटर शौहर शोएब मलिक के हमपेशा मोहसिन खान को चुना था, तब बात आसानी से पच क्यों गई थी? मैं आगरा में थी तब एक मामला उछला था। एक पंजाबी लड़की ने मुस्लिम लड़के से निकाह कर लिया तो हिंदूवादी संगठनों ने ताल ठोक दी। लड़की के घर पर पहरा बैठा दिया गया, लड़के पर हमले तक हुए। एक डिग्री कॉलेज में खूब हंगामा हुआ जहां एक विधायक (अब पूर्व) की शह पर मेरिट में न होने के बावजूद तमाम मुस्लिम लड़कों के प्रवेश कर लिये गए थे। कहीं की भड़ास, निकली कहीं। तब यह आंकड़ा वहां आम हुआ कि कई मुस्लिम लड़कों ने हिंदू लड़कियों से निकाह किया है जबकि मुस्लिम लड़की से शादी करने वाले हिंदू लड़कों की संख्या बेहद कम थी, यह हजम नहीं हो पा रहा था। हिंदूवादी कहे जाने वाले एक संगठन की तो लड़ाई ही इसीलिये है। पर सानिया के मामले में, हिंदूवादी ही उबल रहे हैं। हम दोगले क्यों हो जाते हैं ज्यादातर मामलों में? शोएब ने एक और हिंदुस्तानी लड़की आयशा सिद्दीकी से पहले निकाह किया था और फिर छोड़ दिया। पुलिस अपना काम कर रही थी और शोएब उसका सहयोग। पूछताछ कर ली गई थी। उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया गया था। कहने का मतलब यह है कि कानून अपना काम कर रहा था और आरोपी भी भारत में रहकर कानून की मदद करने का ऐलान कर चुका था। शोएब अपना पक्ष खुलकर रख रहे थे, जबकि आयशा छिपकर और वकील के जरिए। उन्होंने सनसनीखेज इल्जाम लगाया कि वो गर्भवती हो गई थीं। इसके बाद उनका गर्भपात भी हुआ। वकील के मुताबिक वह डिप्रेशन में है। उसे डायबिटीज है, वजन बहुत बढ़ गया है। शोएब के झूठ ने मुझे बर्बाद कर दिया है इसलिए मैं सामने नहीं आ रही। मामला विशुद्ध रूप से व्यक्तिगत था। किसी के व्यक्तिगत मामले में टांग अड़ाना कहां की मानवता है? हम शादी-ब्याह जैसे नितांत व्यक्तिगत मामलों में पंच क्यों बन जाते हैं? मतदाता हमारे उठाए मुद्दों को नकार देते हैं और सत्ता से धड़ाम हो जाते हैं पर मानते नहीं। कैसा सबक चाहते हैं हम? अरे, निकाह हुआ भी है तो तलाक का प्रावधान तो भारतीय कानून और इस्लामी नियम, दोनों में है। सानिया से निकाह करना है तो शोएब को आयशा को तलाक दे देते। और दे भी रहे हैं। मामले पर पर्दा जल्दी गिरना जरूरी था। पाकिस्तान से संबंधों पर भी इसका असर होने लगा था। दोनों तरफ की सियासत आमने-सामने आ रही थी। विवाद अभी भी थमेगा, इसमें शक है क्योंकि हिंदुस्तानी लड़की और पाकिस्तानी शौहर का मुद्दा तो जिंदा है कुछ लोगों के लिए लेकिन क्या चाहते हैं हम, हारी हुई सानिया? थकी और हताश सानिया? क्यों हम अपने एक खिलाड़ी का बेड़ा गर्क करने में तुले हैं?
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11 comments:
सानिया शोएब प्रकरण ने एक कलाकार की संवेदना को भी छुआ -आपके विचार सनुलित एवं सहज है .
I am completely agree with your opinion and Mr. Arvind Mishra's comment.
We do not know what is happening in our neighborhood but we are always interested in prime time news. media is also responsible for this stupid event. They understand their duty. But they focus only to sell news in different flavors.
very bad :(
Uttma ji Saniya ki shadi ke virodh main nirasha ki jhalak bhi hai. ye nirasha Shoaib ke charitra ko lekar chinta paida kar rahi hai. Match fixing ke sath sath, Ayesha ke sath hua dhoka virodh aur nirasha paida kar raha hai. phir hum jashn kaise mana sakte hai, charitraheen dulhe ke swagat ke liye kon taiyer hoga?
वैसे तो असंगत व्यवहार कहाँ नजर आ जाएगा--कहा नहीं जा सकता है; लेकिन मुस्लिम समुदाय में इसकी अति है यह निर्विवाद है। अखिल भारतीय इमाम संगठन के अध्यक्ष के हवाले से आज सुबह के अखबार टेलीफोन पर हुई(मुद्दा आयशा-शोएब की शादी ही है)शादी को नाजायज बता रहे थे। शरीयत के हवाले से तो यहाँ तक छापा गया कि दूसरी शादी की बावत पहली बीवी को बताया जाय यह जरूरी नहीं है। ऐसे बयान ही दिमाग का दिवाला सिद्ध करने के लिए काफी हैं। फिर, दोपहर के समाचारों में पता चला कि शोएब ने तलाकनामे पर दस्तखत कर दिए हैं। देखा जाय तो नाजायज शादी का यह जायज तलाकनामा हुआ। बात को 15 अप्रैल से पहले ही खत्म करने के इरादे से ही ऐसा किया गया है, ऐसा लगता है। बहरहाल, हमारी बच्चियाँ खुश रहें--यही दुआ करते हैं। प्यार, विशेषत: भोगने के लिए इरादतन किए गए प्यार में शक्लो-सूरत का रोल न के बराबर होता है, इसलिए यह हो या वह--एक का बदसूरत और दूसरे का स्टार होना चकित नहीं करना चाहिए।
sundar. apse sahmati hai.pranam
मेरे विचार भी कुछ ऐसे ही हैं. पढिए ----http://nilambujsingh.blogspot.com/
uttama ji aap such kha rhi hain.hajaro log shadi krte hain aur talak bhi dete hain. phir ab koun sa naya ho rha hai.
डॉक्टर उत्तमा, सच में बहुत ही उत्तम लिखा है। मेरा भी कुछ ऐसा ही मानना है कि विरोध की असली वजह वो है ही नहीं जो दिखाई जा रही है। बल्कि बहुत सारी वजहें हैं, उनमें से एक पर मेरी भी निगाह गई है। आप भी देखिए 'ख़ालिस बकैती' में।
www.renukoot.blogspot.com
उत्तमा जी,
बहुत अच्छा लिखा है आपने, मैं भी सहमत हूं कि ये व्यक्तिगत आजादी है। लेकिन सवाल ये नहीं है कि क्या हो रहा है, बल्कि बड़ा सवाल ये है कि क्यों हो रहा है। मेरा मानना है कि इन सबके पीछे हमारी वो सोच है, जिसे हमने समाज में रहकर बना है। विरोध इस बात का नहीं है कि पाकिस्तानी के साथ संबंध जुड़ रहा है । विरोध इस बात का है, कि पाकिस्तानी लड़के के साथ संबंध जुड़ रहा है। कुछ दिनों पहले एक फिल्म आ थी 'वीर जारा' । फिल्म में वीर प्रताप सिंह ने जारा हयात खान से निकाह की तमन्ना की थी। कहानी हिट रही, हर कोई रोया । फिल्म 'गदर' का भी कमोवेश यही हाल रहा। ऐसी ही न जाने कितनी फिल्में हैं जिसमें हिंदुस्तानी लड़के ने पाकिस्तानी लड़की से शादी की । लेकिन मुझे याद नहीं कि किसी फिल्मकार ने किसी पाकिस्तानी लड़के से हिंदुस्तानी लड़की की शादी कराई हो। इस कहानी में भी पूरा खेल यही है. हांलाकि खेल एक और भी है अगर जानना चाहते हैं तो इस बकैत को पढ़ें 'खालिस बकैती' में। क्लिक कीजिए
www.renukoot.blogspot.com
अतुल कुछ दिनों पहले मैने भी फेसबुक पर अपनी एक पोस्ट मे यही बात लिखी थी.
"मेरे दिमाग में एक सवाल उठ रहा था तो सोचा आप को तंग कर लूं.मैने जितनी हिन्दी फिल्में देखी हैं जिनमें मुस्लिम- मुस्लिमेतर लड्की-लड़कों के प्रेम प्रसंग दिखाये जाते हैं उन्में अक्सर नायक मुस्लिमेतर होता है और नायिका मुस्लिम. ऐसा क्या वाकई किसी सोच के तहत होता है या मेरा पूर्वाग्रह है? क्योंकि हिन्दी फिल्मी दुनिया मे कम से कम तीन खान ऐसे हैं जिनके हिन्दू लड़कियों से सम्बन्ध हैं. तो इस पर आपके विचार जानना चाहुंगा."
03 April at 05:53
mere liy to hindu &muslim me koi fark nahi mere bhatize ne muslim girl se nikah kiya she is MA in Sanstrit . meri bahu bani he muzhe bahut acga lagta he
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