उन्हें अपनी सृजन क्षमता का प्रदर्शन करने के लिए बेहद स्वाभाविक माहौल मिला था, जहां उनके चित्रों ने हर उम्र के लोगों को कुछ सोचने और करने के लिए प्रेरित किया। 26 सितम्बर को दैनिक जागरण कार्यालय में दिन चढ़ने के साथ ही नवोदितों का आना शुरू हो गया था, जहां उनका जोश और उत्साह देखते ही बनता था। अपनी कला के माध्यम से कैनवास पर प्रदूषण मुक्त काशी का निर्माण करने आए नवोदित प्रतिभाओं में गजब का उत्साह था। नौनिहालों का यह नजारा किसी को भी प्रभावित कर सकता था। किसी का मन मचल रहा था तो कोई भावनाओं में बह रहा था। असल में यह दिन सृजन की दुनिया में अपना मुकाम तलाश रहे कला के नन्हे चितेरों के समागम सरीखा रहा। प्रदूषण विषय पर केंद्रित चित्रकला प्रतियोगिता में नौनिहालों ने रेखांकन और रंग दोनों का आनंद लिया। चित्रों में प्रदूषण के कारण प्रभावित हो रहे जीवन के विविध रंग देखने को मिले। जीवन के विविध प्रसंगों पर बने चित्र नयनाभिराम रहे। तीन वर्गो में आयोजित प्रतियोगिता में विभिन्न आयु के प्रतिभागियों ने पेस्टल और एक्रीलिक रंगों से जहां प्रकृति के सुरम्य वातावरण के साथ-साथ काशी के जन-जीवन को चित्रित किया, वहीं बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के कारण लोगों के जीवन की पीड़ा और वेदनाएं प्रदर्शित की। उनके काम की कोई सटीक उपमा दी जाय तो वह होगी पारदर्शिता। प्रतिभागियों ने चित्रों में अपनी कला अभिव्यक्ति को सहज और बोधगम्य बनाया। उनके चित्रों को देखकर लगा कि वे काव्यात्मक कला में माहिर हैं। नवोदित चित्रकारों ने गंगा घाटों की अनुपम छटा, गांवों के लैंडस्कैप, शहरों के स्कैप, खंडहरों के चित्रों को बोर्डरूम व डिजाइनर घरों तक ले गए और फिर प्रदूषण के कारण उनके विकृत स्वरूप को भी उजागर किया। उनके लिए कला जीवन का दर्पण लगी, जो उनकी बौद्धिक क्षमता का प्रमाण दे रही थी। पेंटिंग्स में आकृतियां स्पष्ट उभार के साथ बढ़ते प्रदूषण की पूरी कहानी खुद कहती दिखीं, जो बेशक आत्मसंतुष्टि प्रदान करने वाली रही। नन्हे चित्रकारों ने शून्य में मौजूद सरलता को रंगों के सहारे साकार या निराकार रूप दिया। चित्रों में प्रदूषण के कारण शहर का नितांत बदसूरत चेहरा दिखा तो बेहद खूबसूरत चेहरा भी पेश किया। कुछ कृतियों में भारतीय संस्कृति की जीवन-रेखा मां गंगा की वेदना-पीड़ा बखूबी परिलक्षित हुई। चित्र खुद-ब-खुद समाज की पीड़ा भी अलग-अलग अंदाज में बयां कर रहे थे। उनके चित्र कुछ उसी तरह का आभास दे रहे थे, जैसे प्राकृतिक आपदा से उजड़ा शहर। शहर में बढ़ रहे प्रदूषण को प्रतिभागियों ने अलग-अलग आकृतियों के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया। चित्र स्वच्छ काशी-सुंदर काशी के संकल्प को साकार करने के लिए लोगों को प्रेरित कर रहे थे। प्रतिभागियों ने सूखे न नदियां सूखे न ताल-तलैया या फिर स्मोकिंग किल्स क्विट स्मोकिंग, पॉल्युशन ऑफ द अर्थ, मोर क्लीनर एण्ड ग्रीनर इन्वायरमेंट जैसे सार्थक संदेश को कैनवास पर बिखरे रंगों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया। चित्रों में पर्यावरण संरक्षण के प्रति गंभीरता दिखी। ऐसा लगा जैसे नवोदित कलाकार नए दृश्यों और विचारों के साथ खेलना तो पसंद करते हैं लेकिन आजकल वे औद्योगिक प्रगति को लेकर कुछ ज्यादा ही उलझ़े हुए हैं। कुछ चित्रों में नए कारखानों, आवासीय कॉलोनियों और सड़कों के निर्माण में प्रदूषण, हिंसा और काव्यात्मक दृश्यों का अद्भुत मिश्रण दिखा। चित्र उम्दा रहे, जहां से सौन्दर्यपरक प्रतिध्वनियां प्रस्फुटित हो रही थीं। प्रतिभागी अपना उत्साह छिपा नहीं पा रहे थे। प्रतियोगिता के विभिन्न वर्गो के विजयी प्रतिभागियों को सम्मानित करते हुए दैनिक जागरण के निदेशक व स्थानीय संपादक वीरेंद्र कुमार ने कला के नवोदित चितेरों का उत्साहवर्द्धन किया। चित्रों का अवलोकन कर नन्हे व युवा कलाकारों की सृजन क्षमता को खूब सराहा। नए व अभिनव प्रयोग को हर स्तर पर प्रोत्साहित करने पर भी बल दिया। निर्णायक मंडल में बीएचयू के दृश्य कला संकाय की प्रो.भानु अग्रवाल, डॉ.उत्तमा दीक्षित तथा दिल्ली पब्लिक स्कूल वाराणसी की आर्ट फैकल्टी की प्रमुख रिंकू चक्रवर्ती रहीं। डॉ. उत्तमा के शब्दों में- प्रतियोगिता में नवोदित चित्रकारों के लिए कला कोई फास्ट फूड की तरह नहीं बल्कि जीवन की तरह ही गंभीर और सघन चिंतन-मनन का विषय सरीखी दिखी। पुरस्कार वितरण समारोह में दैनिक जागरण के मैनेजर अंकुर चड्ढ़ा,एलआईसी के सेल्स मैनेजर पीके श्रीवास्तव भी मौजूद थे।(जैसा दैनिक जागरण, वाराणसी ने प्रकाशित किया)
यहां देखें प्रतियोगिता का कवरेजः-
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=40&edition=2010-09-27&pageno=6
Monday, September 27, 2010
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1 comment:
शानदार प्रस्तुति .......
पढ़िए और मुस्कुराइए :-
आप ही बताये कैसे पार की जाये नदी ?
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