Tuesday, July 19, 2011

कोलाज की अजब दुनिया

अगर आपको नए एक्सपेरिमेंट्स का शौक है और कई वैरायटी के कलर्ड पेपर, कपड़ों के टुकड़े, वाल पेपर, रिबन, शापिंग बैग्स, कलर्ड थ्रेड्स आपके पास हैं तो आप उनसे क्रिएटिव आर्ट पीस तुरंत तैयार कर सकते हैं. जरूरत है सिर्फ उन्हें एक साथ कंपोज करके पेपर पर चिपकाने की. यह कोलाज पेंटिंग टेक्निक है जिसमें एक-दूसरे से अलग मैटीरियल्स को एकसाथ जोड़कर बनाया जाता है. कोलाज बनाना एक फन जैसा है जो बहुत ईज़ी भी है. इसे कैरी करना भी आसान है.
विजुअल आर्ट में रखा गया है कोलाज को जो एक फेंच शब्द है. यह कोले शब्द से बना है जिसका अर्थ है चिपकाना. इस कला में अनूठी बात यह है कि विविध चीजों को मिलाकर एक नया रूप सामने आता है. कोलाज पेंटिंग की शुरुआत क्यूबिस्ट आर्टिस्ट जार्ज ब्राक और पाब्लो पिकासो ने बीसवीं सदी में ही कर दी थी, बाद में और आर्टिस्ट अपनी-अपनी तरह से इसमें काम करने लगे. थ्री-डी इफेक्ट की वजह से इसमें पेंटिंग और स्कल्पचर दोनों का आनंद मिलता है. कोलाज के लिए फेमस सीनियर आर्टिस्ट अमृत लाल वेगड़ कहते हैं, मैं अपनी पेंटिंग्स में एक मैग्जीन के कलर्ड पेजेज का यूज करता हूं ताकि उनमें शेप और टेक्स्चर को नया आयाम मिले. इसीलिये मेरे पास ऐसी मैग्जीन्स के करीब पांच सौ इश्यू हर समय रहते हैं. कोलाज बनाना इतना एंजायिंग है कि एक कागज पर दूसरा कागज चिपकाइये और वह भी अच्छा न लगा तो तीसरा और चौथा. कागज इतना पतला होता है कि तीन-चार परत चढ़ने के बाद भी कोई डिफरेंस नहीं पड़ता. सचमुच कितना मजा आता है जब कोलाज में कौआ आंख बन जाए और नदी के डेल्टा का दलदल हैंडलूम की साड़ी. यह हमेशा नई छटा प्रस्तुत करते हैं. कई साल पहले इंडियन पिकाओ मकबूल फिदा हुसैन ने भी फिगरेटिव कोलाज बनाए थे.
मुंबई के एक आर्टिस्ट ने जले हुए फोटोग्राफ्स को चारकोल से बनी ड्राइंग पर चिपकाकर नया अनूठा इफेक्ट दिखाया. वहीं आगरा की एक आर्टिस्ट ने ताजमहल की कई कोलाज पेंटिंग बनाईं, इस मिक्स मीडिया पेंटिंग्स में उन्होंने एक्रेलिक कलर का यूज भी किया.
कोलाज की एक टेक्निक फोटो-मान्टेज में अलग-अलग फोटोग्राफ्स या उनके टुकड़ों को काटकर किसी दूसरे फोटो से जोड़कर चिपकाया जाता है. कई आर्टिस्ट इस टेक्निक का यूज करते हैं और काफी फेमस भी हैं.यह एक तरह से इमेज एडिटिंग साफ्टवेयर का काम होता है. सच में बहुत मजा आता है इसमें. वह कोलाज ही तो है जिसने सोशल एक्टीविस्ट बिनायक सेन की लड़ाई को आर्ट से जोड़ा. कोलकाता के एक आर्टिस्ट ने इसमें पेंटिंग, फोटोग्राफी और उनके करीब 50 मिनट के भाषण को एकसाथ जोड़ा. टेक्स्ट, फोटो, आडियो, वीडियो, कविता, पेंटिंग सब-कुछ इसमें शामिल था. लगभग सभी आर्टिस्ट कोलाज जरूर बनाते हैं, यह अलग है कि कभी-कभी कोलाज भारी भरकम पेंटिंग्स सब्जेक्ट्स से हुई थकान से मुक्ति दिलाने का काम करते हैं. कंप्यूटर्स के बढ़ते यूज ने कोलाज में भी इंटरफेयर किया है, इसे डिजिटल कोलाज का नाम मिला है. इसमें एडिटिंग का काम कंप्यूटर करते हैं, साथ ही डिजिटल इफेक्ट भी उसी से आता है. तरह-तरह के साफ्टवेयर हैं जो कोलाज बनाने की कला को आसान कर रहे हैं.
और भी कई तरह के कोलाज हैं. वुड कोलाज में वुडेन पीसेज को बोर्ड पर चिपका देते हैं. किसी भी बेकार मान ली गई वस्तु से भी कोलाज बनते हैं जैसे टूटे हुए कप. इन्हें और अट्रैक्टिव बनाने के लिए रस्सियों और कलर्ड थ्रेड्स का यूज होता है. कोलाज बेशक नई विधा नहीं है लेकिन यूथ आर्टिस्ट ने इसे और अट्रैक्टिव बना दिया है. वह खूब सोचते हैं और रचते हैं. नए एक्सपेरिमेंट्स से झिझकते नहीं. कहते हैं कि कोलाज दिल से निकली अभिव्यक्ति है और विविध आयामों को एक आयाम के रूप में प्रस्तुत करने जैसा है. यह ठीक उसी तरह है जैसे सात रंगों को मिलाकर स्पेक्ट्रम पूरा होता है. स्टूडेंट्स और नए आर्टिस्ट का रुझान बता रहा है कि कोलाज का भविष्य बहुत अच्छा है.

समाचार पत्र आई-नेक्स्ट में भी देखें मेरा यह आर्टिकल-
http://epaper.inextlive.com/8132/i-next-agra/18.07.11#p=page:n=11:z=1

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