Wednesday, March 4, 2009
ज़न्नत पर बुरी नज़र
पाकिस्तान में चरमपंथ अपने चरम पर है। मुल्क की स्वात घाटी कभी अपनी जन्मजात खूबसूरती के लिए इस ज़मीन की ज़न्नत कही जाती थी। अपने कश्मीर को जब हम धरती का स्वर्ग कहते तो पाकिस्तानी स्वात पर अघाते नहीं थकते। कुछ भी हो, स्वात भी खूबसूरती की मामले में उन्नीस नही। खूबसूरती अब भी है, पर चरमपंथ का चोला ओढे आतंकवाद के ग्रहण से आतंकित। जहाँ आँखें खूबसूरत वादिओं पर टिकती थीं, वहां टेंकों और बर्बर चेहरे वाले तालिबानी आतंकवादिओं का राज है। बदहाली का यह दौर यहाँ 2002 से शुरू हुआ, जब पश्तू जन्जातीओं के राज को अफगानिस्तान से आए तालिबानिओं ने कब्जाना शुरू कर दिया। पिछले साल चुनाव में पश्तू वोटर्स ने सेकुलर अवामी नेशनल पार्टी को हुकूमत तक पहुंचाया पर असर कुछ नहीं हुआ। कलाकारों ने साथ दिया और अब खामियाजा भुगत रहे हैं। पकिस्तान कलाजगत के इस पोस्ट का विषय इसलिए नहीं बन गया कि वहां हालात काबू से बाहर हो चुके हैं और स्वात घाटी में तालिबान की हुकूमत को पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की राष्ट्रीय सरकार मान्यता दे चुकी है, बल्कि ये जिक्र इसलिए आया कि स्वात में कला की कमर तोड़ कर रख दी गई है। स्वात समेत पूरे North-West Frontier Province में कला और संस्कृति तालिबानी हमले की जद में है। कला, संगीत और पर्यटन को तहस-नहस किया जा रहा है। शरिया कानून लागू करते तालिबान ने वहां सिनेमा हॉल बंद करा दिए हैं, म्यूजिक शोप्स तोड़ दी हैं और लड़किओं के स्कूलों पर ताले डाल दिए हैं। पाकिस्तान में सबसे ज्यादा संगीत और कला के स्कूल इसी प्रान्त में थे। यहाँ 400 से ज्यादा स्कूल बंद हुए हैं और करीब 10 हज़ार लड़की और 40 हज़ार लड़के घर बैठने को मजबूर कर दिए गए हैं।
नामचीन पश्तू कॉमेडियन अलम्जेद मुजाहिद को एक हफ्ते की भय और उत्पीडन भरी कैद से बमुश्किल आज़ादी हासिल हुई है। थिएटर और सिनेमा में 300 से ज्यादा शो करने वाले 40 वर्षीय मुजाहिद अब मुस्लिम मजहबी ग्रुप तलिभी ज़मात को ज्वाइन करने वाले हैं, जीना है तो उन्हें यह करना होगा। इस्लामाबाद तक की गलिओं में तालिबान के पोस्टर चिपक जाने के बाद पकिस्तान भर से दो दर्जन से ज्यादा डांसर, सिंगर और पेंटिंग आर्टिस्ट कनाडा, जर्मनी, नॉर्वे, दुबई जैसी जगहों पर पलायन कर चुके हैं। पश्तू फ़िल्म और ड्रामा उद्योग तालिबानिओं के चाबुक से बदहाल है, कलाकार भुखमरी की मार से मरे जा रहे हैं। बात ज्यादा दिन पुरानी नहीं जब उभरते गायक सरदार युसुफजई पर गोलिआं बरसाईं गई। वो तो बच गए पर साथी कलाकार अनवर खान की मौत हो गई थी। फिर, महिला डांसर शबाना की लाश उसकी परफॉर्मेंस वाली CDs के साथ सड़क पर पड़ी मिली थी। इस्लामाबाद से अपनी 24 पेंटिंग्स लेकर आतंक ग्रस्त राज्य की राजधानी पेशावर में exhibition लगाने आई सबीना खर्दुम को न केवल जलालत व मार मिली बल्कि अपनी कला की सरेबाजार होली जलती और देखनी पड़ी। वो एक महीने से अस्पताल में हैं। भय का साम्राज्य है, किसी बस में यदि म्यूजिक की आवाज़ आ गई तो उस पर बम से हमला होता है। पेशावर की सूरत बदली सी है, अफगानिस्तान से आने वाले खैबर बाईपास से जुडा यह शहर अब न बड़ा कॉमर्शियल सेण्टर है और न अब वहां कलाकारों, व्यापारिओं का मेला जुटता है। Handicrafts, Footwear और Cotton, Silk उद्योग वीरान पड़े हैं। प्राचीन गांधार सभ्यता की मूर्तिकला के नायाब नमूने कहे जाने वाले पेशावर म्यूज़ियम का सन्नाटा तोडे नहीं टूटता। यह बता दिया गया है कि, 1950 में बनी यूनिवर्सिटी में कला, संगीत, संस्कृति और फैशन स्टडीज डिपार्टमेन्ट अब नहीं खुलेंगे। अमेरिका के घोर विरोधी रहे पाकिस्तानी भी आतंक से मुक्ति के लिए अब अमेरिका पर ही नज़रें टिकाएं हुए हैं। अफगानिस्तान में रशिया के खिलाफ खड़ा किया उनका तालिबान अब उन्हें ही डसने जो लगा है। आतंक की ये महामारी पूरे पाकिस्तान पर शिकंजा कस रही है। कलाजगत के इन खौफज़दा नुमाइंदों की तो खुदा खैर करे...
झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल से प्रकाशित दैनिक प्रभात ख़बर के 6 March के अंक में कृपया सम्पादकीय पेज पर पढिये मेरा लेख :-
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9 comments:
उत्तमा जी,
बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है आपने। पाकिस्तान में आदमीयत को मारा जा रहा है और सरकार पंगु है। जो बीज अमेरिका ने बोए वह भी अब उन्हें चाहकर भी नहीं काट पा रहा है।
आतंकवाद पर चल रही रटी-रटाई अवधारणाओं से परे हटकर आपने इस लेख को लिखा है। यही इस लेख की उपलब्धि है।
Bush sarkar ke jane ke bad talibanon ko ek bar phir se pankh nikal aaya hai....inlogon ne bamiyan me budh ki ek pratima ko uraa diaya tha...prashan yeh hai ki inhe kaise roka jaye aur rokega kaun...kala ki koi sima nahi hoti...duniya bhaar ke kala jagat me isake khilaph awaj uthani chahiye...aapake sur me main bhi apana sur milata hun....
देखते ही देखते सारा संसार रहने लायक नहीं बचेगा। यह आतंक सारे संसार को लील जाएगा।
घुघूती बासूती
सिर्फ़ स्वात घाटी ही नहीं, सच तो यह है कि पूरा भारतीय उप महाद्वीप ही कट्टरपंथियों की ज़द में है. मुश्किल बात ये है कि इसके लिए ख़ुद कट्टरपंथी उतने ज़िम्मेदार नहीं हैं, जितने कि छ्द्म धर्मनिरपेक्षतावादी. ये इतनी लालची, स्वार्थलिप्त और भीरु हैं कि इन्हें गुजरात तो दिखाई देता है, पर गोधरा का नाम आते ही ये आंखें मूँद लेना चाहते हैं. उन सम्प्रदायों की अच्छाइयां भी इन्हें बुराई लगती हैं जो सहिष्णु हैं और सम्प्रदाय तमाम तरह की रूढ़ियों से ग्रस्त हैं उनकी ओर नज़र उठाते हुए भी उनका कलेजा कांप जाता है. क्योंकि उन्हें पता है कि अगर उन पर कोई टिप्पणी करेंगे तो मुसीबत हो जाएगी. अगर भारत को इस मुसीबत से बचाना है तो बिना कोई देर किए साम्प्रदायिक भेद-भाव छोड कर कार्रवाई शुरू करनी होगी. कूटनीतिक चोंचले इस मामले में किसी काम आने वाले नहीं हैं.
उत्तमा जी , सर्वप्रथम आपको धन्यवाद इस पोस्ट के लिए । आपने जीवंत विवरण दिया है । पाकिस्तान की स्वात घाटी में जो कुछ भी आज हो रहा है । वह न केवल पाकिस्तान बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरनाक साबित होगा । खासकर जो लोग अभी वहां प्रभावित है उन्हें मजबूरन आतंक का साथ देना होगा ।
अच्छा और अलग हट कर लिखने के लिए बधाई
शत प्रतिशत सत्य
i am impressed with your deep knowledge about pakistan. aap achcha soshti hai aur bahut achcha likhti hai.
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