Thursday, June 25, 2009

बचानी होगी डिग्रियों की चमक

आख़िर ऐसा हो क्यों रहा है? हम इंडियन अपने एजूकेशन सिस्टम पर इतना इतरा रहे हैं, नयी यूनिवर्सिटीस खोल रहे हैं. लगातार दावा कर रहे हैं कि हम विदेशी यूनिवर्सिटीस से हाथ मिलाकर हाइ लेवेल और मॉडर्न एजुकेशन यहाँ भी देंगे पर इंडियन स्टूडेंट्स क्यों अन्य देशों की ओर दौड़ लगाते हैं? ऑस्ट्रेलिया और फिर कनाडा में अपने स्टूडेंट्स पर लगातार हमलों ने हमें आँख खोलने पर मजबूर कर दिया है. हम इंडियन विदेशों में अपने बच्चो को एजुकेशन दिलाने में हर साल 13 बिलियन डॉलर्स खर्च करते हैं जो बेहतरीन इनफ्रास्ट्रक्चर वाले 100 कॉलेज खड़ा करने में ज़्यादा पड़ेंगे. अकेले यूपी की बात करें तो इन कॉलेजस में 10000 स्टूडेंट्स खप सकते हैं. यहाँ बड़ी संख्या में खुले सेल्फ़ फाइनॅन्स कॉलेजस में एवरेज 100 स्टूडेंट्स की पर्मिशन है. इन 100 कॉलेजस में कितना स्टाफ नौकरी पाएगा यह तो एक और भी प्लस पॉइंट है. हर साल करीब 450000 स्टूडेंट्स विदेश जाते हैं. यानी जितना पैसा इन स्टूडेंट्स को विदेश जाने से रोकने के लिए चाहिए वो कोई बहुत ज़्यादा नही. सरकार हाइयर एजुकेशन सिस्टम पर बहुत बड़ी राशि खर्च करती है और एजुकेशन को इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन में फंडामेंटल राइट माना गया है।अब सवाल उठता है कि क्यों लगती है ये रेस?
जब हम खूब सारे नये इनस्टिट्यूट्स खोल रहे हैं, रोज नयी प्राइवेट यूनिवर्सिटीस सामने आ रही हैं, नये कोर्स शुरू हो रहे हैं, फिर भी यह क्रम रुकने के बजाए तेज़ हो रहा है, क्यों? ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूएस, यूके, सिंगापुर में ये स्टूडेंट्स 1500-2000 डॉलर्स हर महीने खर्च करते है, जबकि आईआईटी जैसे बड़े संस्थानों में 120 डॉलर्स के बराबर रुपयों में काम चल जाता है. फिर भी ये हाल? इसकी कई वजह हैं। हम अपने स्टूडेंट्स और उनके पेरेंट्स को गाइड करने के बजाए कॉनफ्यूज होने से नही रोक पा रहे. मैने खुद कॅल्क्युलेशन किया तो पाया कि एक दिन में अलग-अलग प्रचार माध्यमों से स्टूडेंट्स के पास दर्जनो कॉलेजस का नाम पहुँच रहा है. बड़े इनस्टिट्यूट्स में सीटें ज़्यादा हैं नहीं, कड़ी स्पर्धा है। फिर एजुकेशन फील्ड में धोखाधड़ी भी भरपूर है. एक एमबीए स्टूडेंट आया था मेरे पास. उसने एक लाख रुपये डोनेशन देकर लखनऊ में एडमीशन लिया, साल भर पढ़ाई भी की पर एग्ज़ाम का टाइम आया तो उसकी जगह 50 हज़ार ज़्यादा देने वाले को बैठा दिया गया. एक और मामला मुझे याद है, एक टीचर ने अपने पड़ोस में रहने वाले लड़के का एडमीशन कराया. पूरे साल पढ़ाई करने के बाद उसे एक अन्य कॉलेज में कुछ लड़कों के साथ एग्ज़ाम दिलाया गया. जॉब मिलने पर मार्क्सशीट का वेरिफिकेशन हुआ तो वो फर्जी मिली. ऐसे तमाम फ्रॉड अख़बारों की हेडलाइन्स बनते रहते हैं. एजुकेशन के नाम पर तमाम लोग धंधाखोरी कर रहे हैं जिससे स्टूडेंट्स में डर पैदा हो रहा है.
कोई शक नहीं कि विदेशों में ज़्यादा बेहतर एजुकेशन सिस्टम है. वहाँ अपने बच्चे को पढ़ाना स्टेटस सिंबल तो है ही. एक और प्लस पॉइंट यह है कि एजुकेशन लोन के ज़रिए ये बहुत मुश्किल भी नहीं. वहाँ पार्टटाइम जॉब के ज़रिए इस लोन को चुकाना बहुत आसान है. विदेशों में पैसा है, और अगर इंडिया आना पड़ा तो विदेशी डिग्री के दम पर बढ़िया नौकरी की गारंटी भी है. ऐसे में हम ना तो उन्हें जाने से रोक सकते हैं और ना ही रुकेंगे ही. फिर होना क्या चाहिए? फौरिन जरूरत तो एजूकेशन सिस्टम की कमियां सुधारने कि है. हमारी सरकार के कड़े कदमों की है. उसे इन देशों को अपने स्टूडेंट्स की सेफ्टी के लिए मजबूर करना होगा. जब तक हम अपने यहाँ ही ऐसा सिस्टम डेवलप नहीं कर लेते, अपने स्टूडेंट्स का करियर सेफ और ब्राइट कर पाने में सक्षम नहीं हो जाते तब तक, आँसू बहाने के बजाए समझदारी से काम लेना होगा. कोसने से तो बेहतर है हालात का सामनाकरना। उम्मीद है कि यही होगा और उम्मीद पर ही तो दुनिया कायम है.



मेरा आर्टिकल inext newspaper के सभी संस्करणों में दिनांक 25 june 2009 के अंक में भी पढ़ें-
http://inext.co.in/epaper/Default.aspx?edate=6/25/2009&editioncode=1&pageno=16

6 comments:

नदीम अख़्तर said...

अस‌ल में बहुत ही मजबूर किस्म की शिक्षा पद्धति जिम्मेवार है ब्रेन ड्रेन के लिए। आपकी बातों स‌े मैं स‌ौ फीसद स‌हमत हूं। मैंने यह आर्टिकल स‌ुबह स‌ुबह आइनेक्स्ट में पढ़ा था। मेल में आपका लिंक देखा तो कमेंट दे रहा हूं। मैंने द पब्लिक एजेंडा के ताजा अंक के लिए एक लेख इसी विषय पर लिखा है। आपके मेल पर मैं उसका पीडीएफ भेजता हूं, पढ़कर बताइयेगा कि क्या कुछ गलती है या स‌ब ठीक है।

anil yadav said...

सच कह रही हैं देश में बढ़िया संस्थानों की और अधिक स्थापना करनी होगी साथ ही शिक्षा माफिया पर नकेल कसनी होगी तभी विदेश जाने के इस सिलसिले पर रोक लग पायेगी....

Alok Nandan said...

भारत मे एजुकेशन माफियाओं की चांदी है...विदेशों से भी इनके लिंक जुड़े हुये हैं....देश तो एसे ही चलेगा ....कोई कुछ नहीं कर सकता है....आलेख लिखना अच्छा है...लेकिन आलेखों का असर जीरो प्रतिशत है....वैसे आपके शब्दों में इमानदारी है...शायद कुछ असर करे...

www.ratnakarart.blogspot.com said...

आज के दौर में उत्तमा जी शिक्षा की जीतनी खूबियाँ आप अपने लेख में गिनाई है यथा - आप बनारस में है भाग्यशाली है की ब्लॉग के जरिये अपनी चिंता जाहिर कर रही है . पर वही एसे एसे महारथी बैठे है कभी उनके बगल में बैठ कर उनके दिलो दिमाग में झाकने का प्रयास किया आपने , जाती , धरम , संबंधों और स्वार्थ से आगे न बढ़ पाने की खुबसूरत तस्वीर आपने नहीं देखी होगी उनके मन में . वो सारे लोग जिनमे प्रतिभा थी विदेशों में ही खपे थे जिस ख़राब खेप के चलते आज हमारी शिक्षा की यह दशा हो रही है उसी का एक हिस्सा बिदेशों में एसी की तैशी करा रहा है . क्योंकि यहाँ तो कम चल रहा ..........................पर वहां यहाँ वाला सब कुछ कैसे चलेगा . शर्म यहाँ पर भी आनी चाहिए न की वहां पर .

www.ratnakarart.blogspot.com said...

आज के दौर में उत्तमा जी शिक्षा की जीतनी खूबियाँ आप अपने लेख में गिनाई है यथा - आप बनारस में है भाग्यशाली है की ब्लॉग के जरिये अपनी चिंता जाहिर कर रही है . पर वही एसे एसे महारथी बैठे है कभी उनके बगल में बैठ कर उनके दिलो दिमाग में झाकने का प्रयास किया आपने , जाती , धरम , संबंधों और स्वार्थ से आगे न बढ़ पाने की खुबसूरत तस्वीर आपने नहीं देखी होगी उनके मन में . वो सारे लोग जिनमे प्रतिभा थी विदेशों में ही खपे थे जिस ख़राब खेप के चलते आज हमारी शिक्षा की यह दशा हो रही है उसी का एक हिस्सा बिदेशों में एसी की तैशी करा रहा है . क्योंकि यहाँ तो कम चल रहा ..........................पर वहां यहाँ वाला सब कुछ कैसे चलेगा . शर्म यहाँ पर भी आनी चाहिए न की वहां पर .

naresh singh said...

बहुत ही अच्छी और सच्ची जानकारी है । आज की इस पीढी को इस प्रकार की जानकारी की आवश्यकता है । इसे जारी रखे ।