Monday, July 20, 2009
बेरोजगारी का तमाशा
यह देखिये बेरोजगारी का एक और खेल। मजबूरी के मारों का जीने के लिए संघर्ष। गडबडी के ख़िलाफ़ निर्णायक लड़ाई का प्रण। नौकरी की आस टूटने पर हाहाकार। उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में सेना की भर्ती के दौरान मचे बवाल से मुझे तो कतई आश्चर्य नहीं हुआ। हाँ, दुःख जरूर है नौजवान की मौत का, नक्सल प्रभावित इलाके में बेरोजगार युवाओं को रोजगार दिलाने की कोशिश के भेदभाव के आरोपों से सने अंजाम का। उपद्रव के दौरान सरकारी और लोगों की निजी संपत्ति पर बरपे कहर से भी दुखी हुई हूँ। कभी बनारस का ही हिस्सा रहे इस जिले की गरीबी और सरकारी स्तर पर उपेक्षा मैंने देखी है। यहाँ जो है, कहीं और होता तो कोई जागृत सरकार न जाने क्या कर डालती। यहाँ वन सम्पदा है, नौगढ़ के पहाड़ है, राजदरी-देवदरी के झरने हैं, देवकी नंदन खत्री के मशहूर उपन्यास चन्द्रकान्ता में वर्णित विजयगढ़ दुर्ग भी पास में ही है। किसी भी पर्यटक को आकर्षित करने का सब-कुछ है इस जिले में और आस-पास। दक्षिण दिशा में चकिया-नौगढ़ मार्ग पर हरियाली के बीच स्थित जलप्रपात अपनी नैसर्गिक सुंदरता के कारण बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। यहाँ पक्षियों की चहचाहट के साथ ही वन्य जीवों की पदचाप भी सुन पाना सम्भव है। प्राकृतिक खजाने से भरपूर इस रमणीय स्थल पर गाहे-बगाहे दुर्लभ वन्य जीवों को स्वतंत्र विचरण करते हुए भी देखा जा सकता है। राजदरी से करीब एक किलोमीटर दूर देवदरी है। यहां राजदरी से आने वाला पानी ही गिरता है लेकिन ऊंची पहाडि़यों के बीच झरने से गिरकर मन मोह लेता है। समूचे पूर्वांचल में यही स्थान हैं, जहाँ प्रकृति की सुन्दरता के तले सुकून है। फिर भी बेरोजगारी और घोर गरीबी है। यदि इन स्थानों को ही विकसित किया गया होता तो तस्वीर दूसरी होती। बनारस, सारनाथ और बौधगया की वजह से देसी के साथ तमाम विदेशी पर्यटक यहाँ भी पहुँचने लगते। मुग़लसराय स्टेशन के साथ ही यहाँ से गुजर रहा लंबा नेशनल हाईवे इसमें मददगार सिद्ध होता। पर्यटक आरामभर के लिए भी ठहर जाते तो लोगों को रोजगार मिल जाता। सरकार बेशक गरीबी के सियासी लाभों की वजह से भूल जाए पर आप मत भूलिए कि आगरा जैसे शहर सिर्फ़ पर्यटकों की आवाजाही से ही खूब फले-फूले हैं। दिल्ली-आगरा हाईवे पर पर्यटकों के आराम भर कर लेने से दर्जनों ढाबों-होटलों पर सैकडों लोग रोजगार पाये हुए हैं। तमाम सहायक काम-धंधे पनप गए हैं। जिला बिहार का नजदीकी है पर वहां की अशांति का लाभ तक सरकार यहाँ नहीं दिला पायी वरना यहाँ भी उद्योग विकसित हो गए होते। तब शायद न इतनी बेरोजगारी होती और न ऐसा हादसा ही होता।
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11 comments:
Uttama ji, मित्र, वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। aaj ke parivesh me yah mudda bahut hi praasangik hai. आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे, बधाई स्वीकारें।
आप के द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं मेरा मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन करती हैं।
आप के अमूल्य सुझावों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...
Link : www.meripatrika.co.cc
…Ravi Srivastava
बहुत विचारोत्तेजक रचना. तथ्यो का सही विश्लेषण.
चित्र तो विचलित कर ही रहा है.
उत्तम लिख उत्तमा ने, नेक किया है काम.
अनछूते हैं बहुत से जीवन के आयाम..
संवेदनमय दृष्टि को खलती पर की पीर.
आँसू पोंछे गैर के, और बँधाए धीर..
सही विश्लेषण के साथ अच्छा लेख।
बधाई!
उत्तम जी ! बेरोजगारों पर हुए इस कहर को आपने छायावाद की शैली में प्रस्तुत किया है. आपकी पोस्ट में इस कृत्य का विरोध और आक्रोश से ज्यादा वहां का सौन्दर्य वर्णन और ऐतिहासिक महत्त्व झलक रहा है . उस मां की पीडा कहीं नहीं है जिस नें रोजगार की तलाश में गए अपने बेटे को खो दिया. आपके ब्लॉग का चरित्र अलग है फिर भी मेरी टिप्पणी को अन्यथा न लेते हुए इस तरह के कृत्यों के विरोध में एक बहस शुरू कीजियेगा.
आशेन्द्र जी, मैने सबसे पहले उस नौजवान की मौत पर दुख जाहिर किया है. मेरा मानना है क़ि यदि चंदौली का इस तरह विकास होता तो न ऐसी बेरोज़गारी होती और न इस तरह की घटना.
उत्तमा जी, चन्दौली के विकास और इस मौत का कोई सीधा संबंध नहीं दीख रहा मुझे । सेना की भर्ती की यह प्रक्रिया केवल चन्दौली के लिये ही नहीं अपितु पूरे प्रदेश के लिये थी । अब इसे संयोग कह लीजिये कि अंतिम में चन्दौली की भर्ती होनी थी, और घटना घट गयी ।
एक और कारण जो प्रमुखतः समने आया है वह है सेना का पक्षपातपूर्ण रवैया जो उसने भर्ती में अपनाया । अन्य जिलों के अभ्यर्थी तो शायद बाहरी होने के कारण विरोध न कर सके, पर चन्दौली जिले के अभ्यर्थियों को यह पक्षपात रास नहीं आया और घटना घट गयी ।
हाँ इस घटना से अलग होकर आपकी इस बात से पूर्ण सहमति है कि चन्दौली का सम्यक विकास नहीं हो पाया है और न ही उसके लिये कोई बेहतर कार्ययोजना ही बन रही है । वाराणसी से अलग होने के बाद चन्दौली अपने को जिले के तौर पर शायद खड़ा ही नहीं कर पाया अब तक ।
चन्दौली जिले का रहने वाला हूँ तो इतनी बात तो कहनी ही थी- शेष फिर !
berozgaari,yuvaon ki upeksha our sarkaari akarmanyata par saarthak chintan hai aapka,ek blueprint jo aasthawaan raajshahi ke kaam aa sakta hai,ye mera aapke lekhon se pahla parichay hai,ummeed hai,yah parichay jaari rahega.main dainik bhaskar ke jabalpur sanskaran mein news editor hoon saath hi ek college mein padha bhi raha hoon.meri badhai sweekaar karen.
हिमांशु जी, उत्तमा जी की बात से मैं सहमत हूँ. एक बात बताइए विकास हो, रोजगार मिले तो हालत इतने बिगडें क्यों. एक बात और ये भारती नक्सल प्रभावित जिले में वहां के युवाओं के लिए ही थी और चंदौली में पहली बार आयोजित की गयी थी.
मुझे सबसे पहले उस नौजवान की मौत पर दुख हे ईश्वर उस के परिवार को इस दुःख को सहन करने की शक्ति प्रदान करे अब रही रोजगार की बात तो मेरा मानना हे की हमारे नेता हो हे ही निकम्मे तो उन्हें दोष देने की जगह हमे संघर्ष करना चाहिए वेसे समाज के कार्य में अगर आप को लगता हे की में आप का साथी बनसकता हूँ तो PLEASE मुझे mail या contact कर सकती हे
चंदौली से पहले भी कई बार ऐसे ही हादसे हुए हैं मुझे याद है कि 2002 में लखनऊ में भी सेना की भर्ती में भी ऐसा ही हादसा हुआ था जिसमें लगभग 10 युवकों की जान गई थी....लखनऊ तो प्रदेश की राजधानी है और जहां तक मुझे लगता है कि चंदौली और लखनऊ में बहुत अंतर है....इन हादसों का सिर्फ एक यही कारण हैं कि हम पिछले हादसों से कोई सबक नहीं लेते हैं....और सभी हादसों को ....चलता है....मानकर निपटा देते हैं....
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