सावन का महीना जाने के बाद देर से ही सही, झमाझम बरसात का मौसम आया है। गर्मियों से मुक्त हो रहा मन प्रसन्न है, नदियां उफन रही हैं। कहीं-कहीं जन का जीवन डिस्टर्ब जरूर है पर मन सभी का खुश। चमकती-कड़कती बिजली, घनघोर घटायें, रंग-बिरंगे बादल, अधखिली धूप, हरे-भरे और बरसात के पानी से धुले-पुछे पेड़-पौधे, कल-कल बहतीं नदियां, लबालब तालाब, उसमें खिलते कमल के फूल, झरनों की खूबसूरती, बारिश में भीगती-छिपतीं जवानी, किलोल करता बचपन, सड़कों पर भरे जल से निकलने की जद्दोजहद, हर ओर हंसी-खुशी। यही तो कला के दिन हैं। बारिश का ये मौसम कलाकारों का सबसे फेवरेट है।
आजकल बड़े हों या नवोदित, सभी कलाकार आउटडोर स्टूडियोज़ में मग्न हैं। घाटों पर छाए हुए हैं, पहाड़ों की यात्रा पर हैं या कहीं और पर नेचर के नजदीक। वे प्रकृति के हर नजारे के नजदीक या बरसात से सीधा संबंध बनाते हुए, इसी प्रयास में हैं कि अपनी कलाकृति में बेहतर ढंग से नेचुरल ब्यूटी उतार सकें। ये सब हो भी क्यो न, कला तो खूबसूरती का ही दूसरा नाम है। कला वही है जो खूबसूरत हो, जिसमें खुशियां हों और जो बरबस अपनी ओर सबका ध्यान खींच ले। सब चाहते हैं कि भागमभाग भरे दौर में कैसे भी हो सके, जरा सी ही राहत मिल जाए। कोई नहीं चाहता कला में मायूसी और बोरियत। इसीलिए लैंडस्केप पेंटिंग्स हमेशा सबसे ज्यादा बिकाऊ रही हैं। दाम के साथ कलाकार को इससे आत्मसंतुष्टि भी खूब मिलती है। कंक्रीट के जंगलों में यह पेंटिंग्स नेचर से साक्षात्कार कराती हैं। जितना व्यस्त हो जाए, आदमी इस नेचर की लालसा नहीं छोड़ पाता। घर में इस तरह की पेंटिंग्स लगाकर वह इस लालसा को पूरा कर लेता है। फूलों से भरे पलाश और गुलमोहर जैसे पेड़ वह घर में लगा नहीं पाता तो वह इसी जरिये आनंद ले लेता है।
मिडिल हो या हायर क्लास, बड़ी संख्या में घरों में यदि पेंटिंग्स दिखाई देंगी तो एक लैंडस्केप भी जरूर होगी और वो ऐसी जगह होगी कि आते-जाते उस पर ध्यान जाए। आर्ट और नेचर तो दो पक्के दोस्त शुरू से हैं। कला ने ही प्रकृति की सुंदरता से परिचय कराया है और प्रकृति के बिना कला जैसे अधूरी सी लगती है। चित्रकला, मूर्तिकला, प्रिंट मेकिंग, पॉटरी, सिरेमिक या टेक्सटाइल डिजाइनिंग यानी कला की हर विधा में प्रकृति का शुरू से असर दिखता रहा है। प्रकृति चित्रण के जरिए नदियां-झरने, फूल-पत्तियां, पेड़-पौधे, सूर्य-चंद्रमा, पहाड़ आदि दिखाकर कलाकार इस रिश्ते को मज़बूत करते रहे हैं। अपने देश की कला ने नेचर की इस खूबसूरती का बखूबी चित्रण किया है। यहाँ प्रकृति के संकेतक बरसात, पेड़-पौधे, नदी-पहाड़ आदि की बैकग्राउंड देने का काफी चलन है।
१८ वीं सदी के अंत में राजा रवि वर्मा ने पश्चिमी शैली का प्रयोग कर हिन्दू धर्म से जुड़े चित्रों में अपनी कल्पना के सुंदर रंग भरे तो बारिश भी यहाँ दिखाई दी। केवट के साथ नाव में नदी पार करते वक़्त भगवान् श्रीराम, उनके कन्धों पर सिर रखकर बैठीं सीता और पीछे खड़े लक्ष्मण के एक चित्र में बारिश भी है। इसी तरह लंका जाने के लिए समुद्र से रास्ता मांगते श्रीराम के चित्र में चमकती बिजली और बादल नज़र आते हैं। द्वापर युग दिखाने वालीं उनकी पेंटिंग्स में भी बरसात है। विदेशी कला में भी यह पैटर्न खूब चला है। तमाम कलाकार तो ऐसे हैं जिन्होंने नेचर के चित्रण से शुरुआत की और फिर इसी सब्जेक्ट के होकर रह गए। चीन के चेन जून ने सर्वाधिक पेंटिंग्स बरसात पर ही बनायीं हैं, जिसमें स्मोकी रेन ने खूब प्रसिद्धि भी पाई। विन्सेंट वेन गफ की ब्रिज इन द रेन, यूक्रेन के अलेक्जेंडर बेलोब्रोवस्की की रेनी सीज़न, मैक अर्नस्ट की यूरोप आफ्टर द रेन भी इस सब्जेक्ट की फेमस कृतियां हैं। स्काटलैंड के स्टेंसफील्ड, हालैंड के वोकार्ट, स्टैनले स्पेंसर, यूरोपियन लैंडस्केप स्पेशलिस्ट टर्नर, कांस्टेबल की कला में भी बरसात का अहम् स्थान है। इंप्रेशनिस्ट आर्टिस्ट क्लाड मोने ने थेम्स नदी में खिले हुए कुमुदनी के फूल पर सूरज के सुबह से शाम तक बदलते प्रभावों का वास्तविक चित्रण किया है। बरसात उनकी मेन थीम रही है।
आजकल बड़े हों या नवोदित, सभी कलाकार आउटडोर स्टूडियोज़ में मग्न हैं। घाटों पर छाए हुए हैं, पहाड़ों की यात्रा पर हैं या कहीं और पर नेचर के नजदीक। वे प्रकृति के हर नजारे के नजदीक या बरसात से सीधा संबंध बनाते हुए, इसी प्रयास में हैं कि अपनी कलाकृति में बेहतर ढंग से नेचुरल ब्यूटी उतार सकें। ये सब हो भी क्यो न, कला तो खूबसूरती का ही दूसरा नाम है। कला वही है जो खूबसूरत हो, जिसमें खुशियां हों और जो बरबस अपनी ओर सबका ध्यान खींच ले। सब चाहते हैं कि भागमभाग भरे दौर में कैसे भी हो सके, जरा सी ही राहत मिल जाए। कोई नहीं चाहता कला में मायूसी और बोरियत। इसीलिए लैंडस्केप पेंटिंग्स हमेशा सबसे ज्यादा बिकाऊ रही हैं। दाम के साथ कलाकार को इससे आत्मसंतुष्टि भी खूब मिलती है। कंक्रीट के जंगलों में यह पेंटिंग्स नेचर से साक्षात्कार कराती हैं। जितना व्यस्त हो जाए, आदमी इस नेचर की लालसा नहीं छोड़ पाता। घर में इस तरह की पेंटिंग्स लगाकर वह इस लालसा को पूरा कर लेता है। फूलों से भरे पलाश और गुलमोहर जैसे पेड़ वह घर में लगा नहीं पाता तो वह इसी जरिये आनंद ले लेता है।
मिडिल हो या हायर क्लास, बड़ी संख्या में घरों में यदि पेंटिंग्स दिखाई देंगी तो एक लैंडस्केप भी जरूर होगी और वो ऐसी जगह होगी कि आते-जाते उस पर ध्यान जाए। आर्ट और नेचर तो दो पक्के दोस्त शुरू से हैं। कला ने ही प्रकृति की सुंदरता से परिचय कराया है और प्रकृति के बिना कला जैसे अधूरी सी लगती है। चित्रकला, मूर्तिकला, प्रिंट मेकिंग, पॉटरी, सिरेमिक या टेक्सटाइल डिजाइनिंग यानी कला की हर विधा में प्रकृति का शुरू से असर दिखता रहा है। प्रकृति चित्रण के जरिए नदियां-झरने, फूल-पत्तियां, पेड़-पौधे, सूर्य-चंद्रमा, पहाड़ आदि दिखाकर कलाकार इस रिश्ते को मज़बूत करते रहे हैं। अपने देश की कला ने नेचर की इस खूबसूरती का बखूबी चित्रण किया है। यहाँ प्रकृति के संकेतक बरसात, पेड़-पौधे, नदी-पहाड़ आदि की बैकग्राउंड देने का काफी चलन है।
१८ वीं सदी के अंत में राजा रवि वर्मा ने पश्चिमी शैली का प्रयोग कर हिन्दू धर्म से जुड़े चित्रों में अपनी कल्पना के सुंदर रंग भरे तो बारिश भी यहाँ दिखाई दी। केवट के साथ नाव में नदी पार करते वक़्त भगवान् श्रीराम, उनके कन्धों पर सिर रखकर बैठीं सीता और पीछे खड़े लक्ष्मण के एक चित्र में बारिश भी है। इसी तरह लंका जाने के लिए समुद्र से रास्ता मांगते श्रीराम के चित्र में चमकती बिजली और बादल नज़र आते हैं। द्वापर युग दिखाने वालीं उनकी पेंटिंग्स में भी बरसात है। विदेशी कला में भी यह पैटर्न खूब चला है। तमाम कलाकार तो ऐसे हैं जिन्होंने नेचर के चित्रण से शुरुआत की और फिर इसी सब्जेक्ट के होकर रह गए। चीन के चेन जून ने सर्वाधिक पेंटिंग्स बरसात पर ही बनायीं हैं, जिसमें स्मोकी रेन ने खूब प्रसिद्धि भी पाई। विन्सेंट वेन गफ की ब्रिज इन द रेन, यूक्रेन के अलेक्जेंडर बेलोब्रोवस्की की रेनी सीज़न, मैक अर्नस्ट की यूरोप आफ्टर द रेन भी इस सब्जेक्ट की फेमस कृतियां हैं। स्काटलैंड के स्टेंसफील्ड, हालैंड के वोकार्ट, स्टैनले स्पेंसर, यूरोपियन लैंडस्केप स्पेशलिस्ट टर्नर, कांस्टेबल की कला में भी बरसात का अहम् स्थान है। इंप्रेशनिस्ट आर्टिस्ट क्लाड मोने ने थेम्स नदी में खिले हुए कुमुदनी के फूल पर सूरज के सुबह से शाम तक बदलते प्रभावों का वास्तविक चित्रण किया है। बरसात उनकी मेन थीम रही है।
11 comments:
मौसम का जादू...बढ़िया लिखा आपने..
सुंदर रचना ..बधाई..
आपके प्रोफ़ाईल को देखकर पता चला कि आप्ने बहूत घुमा हुआ है
सही लिखा है ये मौसम का ही जादु ही तो है
कला मे सुंदरता को ही दिखाने का अधिक प्रयास किया जाता है .; और जो प्राकृतिक दृश्य हमें अच्छा लगे .. वह भला कला में क्यूं न हो !!
aaj hamare yaha bahut dhoop hai,magar aapke mausami baarish ne khubsurat nazare ankhon ke samne khade kar diye,bahut sunder.
mausam ke jaadoo ko bahut achche se bataya hai apne......... padh ke achchca laga....... phir profile dekha to samajh mein aa gaya...... ki itne achche se kyun likha gaya hai.......
yeh! do keep it up..........
Regards...........
mahfooz.......
www.lekhnee.blogspot.com
mousam ke jadu me aapke likhne ka bhi jadu mil gya shayd...
mousam ka jaadoo apane aap me ek khubsoorat bhiwyakti hai ........prakriti har ek chij me samaahit hai ......bahut bahut sundar.......
सही कहा आपने - "बारिश का यह मौसम कलाकारों के लिये उपयुक्त है ।"
खूबसूरत प्रविष्टि । आभार ।
मौसम का जादू होता ही ऐसा है की सर बोलता है.....
सुन्दर लेखन......
BARSAAT, KALAKAAR AUR KALA KA SAMBANDH TO HAMESHA SE RAHA HAI ..... AAPKI IS LEKH KA JADOO BHI CHAL GAYA ... LAJAWAAB LIKHA HAI
कृष्ण फिर से धरा पर उतर आइये,
हाथ अर्जुन के गांडीव पकड़ाइये;
सारे जनसेवी बनकर दुशाषन यहाँ-
खींचते भारत माँ का बसन साथियों......
AB TUMHAARE HAWAALE VATAN SAATHIYON .... BAHOOT HI SUNDAR LIKHA HAI ... LAJAWAAB...
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