Tuesday, April 6, 2010
Old art, New followers
आज-कल के यंगस्टर्स का भी जवाब नहीं. अगर कोई आर्ट फील्ड का यंगस्टर है तो बात कुछ और ही हो जाती है. पुराने काम में नए स्कोप तलाशना और उसे आकार देना, खूब शानदार ढंग से कर रहे हैं नई जनरेशन के यह आर्टिस्ट. खास तो यह भी है कि यह लोग किसी रिलीजन के हों, इससे फर्क नहीं पड़ता. देखिए जिस राजा रवि वर्मा से पुराने आर्टिस्ट यह कहकर परहेज करते रहे कि यह कैलेंडर आर्ट के ही स्पेशलिस्ट हैं, उन्हीं को यह जनरेशन फॉलो करने से नहीं हिचक रही. काम तो ही रहा है, दाम मिल रहे हैं और वह भी खूब सारे. बिगेनर्स भी पीछे नहीं क्योंकि ये कॉपी आर्ट ईज़ी है और बायर्स की पसंदीदा भी.
राजा रवि वर्मा हैं कौन? क्यों इन्हें आज भी इतनी पॉपुलरेटी हासिल है? दरअसल, भारत में आयल पेंटिंग शुरू करने वाले राजा रवि वर्मा की कलाकृतियां एक इतिहास हैं. यह वो कलाकार हैं जिन्होंने पहली बार इंडिया में आर्ट को आम आदमी से जोड़ा. ज्यादातर काम उन्होंने हिंदू देवी-देवताओं पर किया है. रामायण-महाभारत से जुड़ी जिन इमेजेस की हम कल्पना करते हैं, वो ज्यादातर राजा रवि वर्मा की ही बनाई हुई हैं. राजा ने अपनी आर्ट में वेस्टर्न और इंडियन स्टाइल का तालमेल बैठाया और हिट हो गए. हिंदुओं के देवी-देवता उनके सब्जेक्ट बने. ब्रिटिश रूल में पेंटिंग्स इतनी महंगी थीं कि आम लोग खरीदने की सोच भी नहीं सकते थे इसलिये लीथोग्राफी प्रेस लगाकर इतना सस्ता बना दिया कि घर-घर में पहुंच गईं. इंडियन सिनेमा का यह बिगनिंग पीरिएड था, आउटडोर शूटिंग की संभावनाएं नहीं थीं इसलिये रवि वर्मा की कला की मदद ली गई. उस समय की फिल्म्स में नल-दमयंती, शकुंतला और रामायण का जब उल्लेख हुआ, राजा रवि वर्मा के चित्र यूज किए गए. विश्व की सबसे महंगी साड़ी राजा रविवर्मा के चित्रों की नकल से सुसज्जित है. बेशकीमती 12 रत्नों व धातुओं से जड़ी 40 लाख रुपये की साड़ी को दुनिया की सबसे महंगी साड़ी के तौर पर लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रेकार्ड में शामिल किया गया है. ब्रिटिश रूल में त्रावणकोर के महाराज और उनके भाई की मद्रास के गवर्नर जनरल रिचर्ड टेंपल ग्रेनविले से मुलाकात पर बनाई उनकी एक पेंटिंग 1.24 मिलियन डॉलर में बिकी है.
बायर्स ज्यादातर पेंटिंग के सब्जेक्ट की ब्यूटी को देखते हैं. राजा का वर्क रियलिस्टिक है, इसमें जो सफाई और बारीकी नजर आती है, वो मॉर्डर्न आर्ट में कहां? एक बड़ा वर्ग इसे ही पसंद करता है और चाहता है कि इसकी एक कॉपी उसके पास भी हो. कला रचने से पहले घूमने-फिरने के शौकीन नए जमाने के आर्टिस्ट राजा रवि वर्मा की पेंटिंग्स में अपने हिसाब से जोड़-घटा भी लेते हैं. इनमें उन्हें लैंडस्केप का स्कोप भी नजर आता है. एक ही पेंटिंग में वो नेचुरल सीन्स की बदौलत लैंडस्केप का शौक पूरा कर लें और साथ ही रियलिस्टिक वर्क में अपने सधे हाथों का कमाल भी दिखा दें तो सोने पर सुहागा जैसी स्थिति ही कही जाएगी. कला की फील्ड में सक्रिय सभी लोग जानते हैं कि लैंडस्केप के बाद सबसे ज्यादा बिकने वाला काम रियलिस्टिक ही है. मायथोलॉजिकल सब्जेक्ट शुरू से सदाबहार हैं पेंटिंग मार्केट में.
एक बात और भी है, घरो में सुंदर कैलेंडर्स को कई साल तक न हटाने वाले लोगों की संख्या भी कम नहीं. यह वह लोग है जो साल गुजरने के बाद कैलेंडर्स के नीचे से डेट वाला सेक्शन रिमूव कर देते हैं और उसे किसी पेंटिंग की तरह यूज करते हैं. इसका इकोनॉमिक रीजन नहीं बल्कि सुंदरता के प्रति प्रेम है. यह लोग इस तरह की पेंटिंग्स के कस्टमर्स भी हैं. हाल ही में दिल्ली की एक गैलरी में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के एक्स स्टूडेंट भी एक्जीबिशन में राजा रवि वर्मा की मायथोलॉजिकल थीम पेंटिंग्स भी थीं जबकि आर्टिस्ट हिंदू नहीं, मुस्लिम है. स्ट्रगलर आर्टिस्ट भी ऐसी ही पेंटिंग्स बनाकर अपना गुजारा कर लेते हैं. दिल्ली-मुंबई के आर्ट मार्केट में उन जैसों की आर्ट बल्क में उपलब्ध है और बिकती रहती है. आनलाइन गैलरीज में भी यह हॉट प्रोडक्ट हैं. आर्ट के स्टूडेंट्स में भी राजा के खूब फॉलोअर नजर आ जाते हैं. राजा ने जो रचा, उसे पसंद करने वाले हैं और रहेंगे. साथ ही नई पीढ़ी के आर्टिस्ट्स की वजह से भी इस आर्ट का भविष्य अच्छा नजर आता है.
(चित्र में वही साड़ी है जो राजा रवि वर्मा की कला से सुसज्जित है और 40 लाख रुपये में बिकी है)
मेरी यह पोस्ट यहां भी पढ़ें-
http://inext.co.in/epaper/inextDefault.aspx?pageno=12&editioncode=5&edate=4/6/2010
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4 comments:
sadi bpar bahut khub kalakari he
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
सच्चा कलाकार तो कलाकार है वह हिन्दू मुसलमान कहाँ ?अच्छा विवरण!
बहुत सुन्दर आलेख!
Gyanvardhak aalekh hai....aur sari to vakai behad khoobsoorat hai...is jankari ke liye shukriya....aur asha kerti hun aisi jankaariyan bhavishaya mein bhi aapke jariye hame milti rahegi...
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