Wednesday, July 7, 2010

इमैजिनेशन और कला

यह आर्ट वर्ल्ड है. कभी हकीकत से भरा और कभी कल्पना के रंगों से सजा हुआ. सभी के मन में कोई न कोई तस्वीर जरूर होती है. इमैजिनेशन नहीं होगा तो दुनिया बदरंग लगेगी पर बात कला की हो तो बिना कल्पना कलाकार हो ही नहीं सकता. मतलब कल्पना नहीं तो कलाकार नहीं. कलाकार अपने इमैजिनेशन को रंगों या पत्थरों से आकार देता है. शायद इसीलिए किसी के पास कम तो किसी के पास अधिक कल्पना शक्ति होती है. हर वह व्यक्ति आर्टिस्ट है जिसके पास ज्यादा इमैजिनेशन पावर है. जीवन हो या कला, दोनों में कल्पना का बेहद इम्पॉर्टेंट रोल है.
आर्ट की किसी क्लास में जाइये. सीखने वाले बच्चे हों या बड़े, सभी एक अलग दुनिया में खोए हुए मिलेंगे. आर्ट शीट या कैनवस पर कलम या कूंची से स्केच खिंच रहे होंगे पर आंखें शून्य में कुछ सोचने में लीन मिलेंगी. अगर यह नजारा न दिखे तो समझ लीजिए यहां कला का सृजन नहीं, सिर्फ टाइम पास किया जा रहा है. पाब्लो पिकासो कहते थे कि कला रचनी है तो दुनिया छोड़ दीजिए. जितनी देर कला की दुनिया में रहें, उतनी देर आम दुनिया से वास्ता मत रखिए. इटली के एक स्कूल की वह घटना खूब सुनी-सुनाई जाती है जिसमें आर्ट की एक क्लास में चोर तीन घंटे तक स्टूडेंट्स का सामान उनके बैग्स से चुराते रहे लेकिन किसी को पता तक न चला. पता भी तब चला जब क्लास खत्म होने के बाद एक स्टूडेंट ने वाटर बॉटल निकालने के लिए बैग में हाथ डाला. घटना इतनी चर्चित हुई कि स्कूल खूब फेमस हो गया. आर्ट फील्ड में उसका नाम रेस्पेक्ट से लिया जाने लगा. फेमस आर्टिस्ट ए. रामचंद्रन ने मायथोलॉजिकल करेक्टर राजा ययाति की लाइफ को उकेरा. कैनवस पर म्यूरल इफेक्ट देकर उन्होंने फिगर और नेचर का शानदार सामंजस्य प्रदर्शित किया. बहुत महंगे बिकते हैं यह चित्र. उन्हीं के समकालीन रामकुमार ने अपनी इमैजिनेशन पावर की बदौलत बनारस के घाटों और गलियों को नया ही लुक दे डाला. अंजलि इला मेनन ने महिलाओं की दुख और गरीबी को अपने इमैजिनेशन से अलग ही ढंग से उभार दिया. देखकर ही करुणा का भाव आता है. एनीमल्स का इस्तेमाल इन पेंटिंग्स को और जीवंत बना देता है.
ललित कला एकेडमी की एक रीजनल एक्जीबिशन में गई तो वहां एक अनजाने से स्टूडेंट आर्टिस्ट रविशंकर की हिडन ईयर देखकर चकित हो गई. येलो कलर में नहाए आसमान और छतों पर एक कपल की परछाई पड़ रही है, दीवार के उस पार कोई सुन रहा है. कल्पना ने रच दिया था कि दीवारों के भी कान होते हैं. एक और स्टूडेंट आर्टिस्ट रामकुमार ने फाइबर ग्लास मीडियम में बनाए स्कल्पचर में आजादी की चाह दिखाई थी, संकेतक बनी हैं मछलियां जो बकेट से कूद रही हैं. एक अन्य कलाकृति में दो लवर्स हैं, जो प्रेम करने के लिए किसी मांद में घुस रहे हैं. एकांत में प्रेम की चाह दिखाई थी उसने. कमाल का इमैजिनेशन है यह. प्रेम की बात होती है तब यह इमैजिनेशन ज्यादा कमाल दिखाता है. लव की सैड एंडिंग स्टोरीज में ब्रोकन हार्ट और हैप्पी एंडिंग में कपल के हाथों को साथ-साथ दिखाना भी तो आर्ट में इमैजिनेशन ही है. फेमस आर्टिस्ट रघु राय ने एक फोटो खींची थी जिसमें झुर्रियों से भरे हाथों में दो नन्हें हाथ थे, नई पीढ़ी को पुरानी का संरक्षण दिखाया था उन्होंने. फेमस ट्रेडीशनल स्कल्पचर आर्टिस्ट दिनेश प्रताप सिंह ने मां की ममता दिखाने के लिए एक स्त्री द्वारा पक्षी को स्तनपान कराते दिखाया. एक आर्ट डिस्प्ले में श्रुति ने ऐसा कोलाज बनाया जिसमें पेपर्स और मैग्जींस की वह कटिंग लगाई थीं जिसमें प्रेमी युगलों की खबरें थीं. सेव एनवायरमेंट के संकल्प को दम देने वाली पेंटिंग्स में वह सब-कुछ इमैजिनेशन से ही डाला जाता है जो पर्यावरण की आदर्श स्थितियों में होता होगा. वेस्टर्न आर्टिस्ट पॉल गॉगिन ने द येलो क्राइस्ट बनाया, जीजस के क्रूसीफिक्शन दिखाने वाली इस कृति ने उस दौर में हंगामा मचा दिया था. एक और पेंटिंग में आम आदमी की सोच वेयर डू वी कम फ्रॉम. व्हॉट आर वी, वेयर आर वी गोइंग टू को उभारा, जिसमें रहस्य और बेचैनी दोनों दिखती हैं. इसमें बहुत सारे फिगर्स हैं जो चिंतामग्न हैं, नेचुरल सीन्स कमाल के हैं. तो वेन गफ ने गेहूं के खेतों पर आश्चर्यजनक ढंग से प्रकृति चित्रण किया. उनकी कल्पना शक्ति अद्-भुत थी. यानि यह सच है कि आर्ट की बात हो और इमैजिनेशन न हो, ये तो हो ही नहीं सकता. नई पीढ़ी भी यह काम ढंग से कर रही है.


कृपया यहां भी देखें मेरा यह आर्टिकल-

http://inext.co.in/epaper/inextDefault.aspx?pageno=12&editioncode=1&edate=7/6/2010

दैनिक जनसत्ता ने लेख को स्थान दिया है, देखने के लिए कृपया निम्न लिंक क्लिक करें और 19 जुलाई 2010 का अंक देखें। इस अंक में पेज नंबर चार (संपादकीय) पर लेख प्रकाशित हैः-
http://www.jansattaraipur.com/

1 comment:

अविनाश वाचस्पति said...

आज दिनांक 19 जुलाई 2010 के दैनिक जनसत्‍ता में संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्‍तंभ में आपकी यह पोस्‍ट कल्‍पना और कला शीर्षक से प्रकाशित हुई है, बधाई। स्‍कैनबिम्‍ब देखने के लिए जनसत्‍ता पर क्लिक कर सकते हैं। कोई कठिनाई आने पर मुझसे संपर्क कर लें।