Thursday, July 8, 2010

कुत्ते का कत्ल और सजाः शर्म और साधुवाद


खबर यह है कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय परिसर में एक कुत्ते को पीटकर मार डालने वाले छह सुरक्षाकर्मियों को बर्खास्त कर दिया गया है। चार दिन पहले की बात है, सुबह से दुखी हो गई। अखबार की एक खबर ने परेशान कर दिया कि विश्वविद्यालय की तुलसीदास कॉलोनी में छह सुरक्षाकर्मियों ने एक निरीह कुत्ते को पीट-पीटकर मार डाला, महज मजा लेने के लिए। यह लोग उस निरीह प्राणी को तब-तब घेरकर मारते रहे जब तक वह चीखता रहा। वह जितना चीखता, इनका आनंद उतना ही बढ़ जाता। विश्वविद्यालय की सुरक्षा के लिए मुस्तैद कर्मचारियों का इस तरह का आचरण भीतर तक दुखी कर गया। आंखों के सामने वह नजारे घूमने लगे जब यह सुरक्षा बल आदरपूर्वक व्यवहार करता है। इन्हीं के दम पर यूनिवर्सिटी परिसर में सब-कुछ हमेशा पटरी पर रहता है। महामना मदन मोहन मालवीय जी के इस पवित्र स्थल पर कहां से पैशाचिक आचरण के यह छह लोग आ गए? कहां जाता है कि इस परिसर में काम करने वाला (मालवीय जी की कृपा से अन्न पाने वाला) यदि किसी बुरे काम की मन में भी लाता है तो उसे बुरी सजा मिलती है। यहीं पढ़ीं हूं इसलिये लगाव ज्यादा है और मालवीय जी पर मेरी श्रद्धा भी। मन में भरोसा बैठाया कि इन छह लोगों को जरूर सजा मिलेगी। विश्वविद्यालय प्रशासन की सजगता से परिचय भी ढांढस बंधा रहा था। मन ने यह भी मान लिया कि बुरे काम का बुरा नतीजा, इन्हें ईश्वर भी दंड देंगे। सच बताऊं तो किसी तरह अपने आंसू रोक पाई थी मैं।
कुत्तों से मुझे बहुत प्यार है। छोटी थी तब कुछ लोगों ने एक पिल्ले को रात नाली में धकेल दिया। उसके चिल्लाने और उनके हंसने की आवाज साथ-साथ आती रही। मम्मी की डांट न पड़े, इसलिये मैं बोली नहीं पर रात में सो नहीं पाई। किसी तरह मौका पाकर दरवाजे की कुंडी खोली और निकल पड़ी। आवाज की दिशा में चलकर पिल्ले को ढूंढ निकाला। बेचारा भीगा हुआ था, समय बीतते-बीतते जैसे मौत के सामने हार मान चुका था और आवाज धीमी हो गई थी। मैंने नाली ने निकाला और घर ले आई। उसे नहलाया, रातभर अपने पास रखा और सुबह उसकी मां के पास छोड़ आई। रोज उसे देखती, एक अलग सा प्रेम उससे पनप गया था। जब तक वहां रही, उसका ध्यान रखती रही। इस समय भी मैंने एक कुत्ता पाल रखा है। बेहद खतरनाक है, जरा सा गुस्सा हो जाए तो हमला करने से नहीं चूकता। मुझे भी काट लेता है। बाहरी आदमी को बख्शता नहीं पर यह उसकी आदत और धर्म, मेरा धर्म और आदत है कि मैं उसका ध्यान रखूं इसलिये रखती हूं। बहुत प्यारा लगता है मुझे।
आज अखबार पढ़ा तो लगा कि इसी अंक का मुझे इंतजार था। विश्वविद्यालय के प्रानुशासक मंडल ने त्वरित कार्रवाई के तहत जांच की और दोषी पाए जाने पर इन छह सुरक्षाकर्मियों को बर्खास्त कर दिया। आस्था बढ़ गई है मेरी ईश्वर में। सच में ईश्वर बुरे काम का दंड देता है और मालवीय जी अपने परिसर में बुरा काम करने वाले को बख्शते नहीं। सराहना की बात है कि एक निरीह प्राणी पर कहर बरपाने वालों को तत्काल और इतनी कड़ी सजा मिली। देश में संभवतया पहली बार पशुओं के प्रति मानवता का इतना बड़ा उदाहरण सामने आया है। बीएचयू के सुरक्षाकर्मियों के लिए आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में कुलपति प्रो. डीपी सिंह ने कहा था कि यहां के सुरक्षाकर्मियों का व्यवहार पुलिस से अलग होना चाहिए। पुलिस को समाजविरोधी तत्वों से निबटना पड़ता है जबकि यहां जवानों का सरोकार सुसंस्कृत विद्वतजनों से है। कार्यक्रम में मानवीय मूल्य और सद्व्यवहार का जज्बा भरा गया। साथ ही व्यक्तित्व विकास एवं तनाव मुक्ति के रास्ते भी सुझाए गए थे। सुरक्षा तंत्र पर इतनी मेहनत करने वाले प्रशासन ने इन दोषियों को बता दिया कि गलत करोगे तो सजा पाओगे। सलाम करती हूं इस प्रशासन को।

5 comments:

Rajeev Bharol said...

बहुत शर्मनाक घटना. अच्छा हुआ दोषियों को सज़ा मिली.... हम इतने कठोर कैसे हो सकते हैं?

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

कहां है भगवान... नक्सलियों के साथ, इस्लामी कट्टरपंथियों के साथ...

महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma said...

मनुष्य सबसे बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी है और तब जब वह कुत्ता कुछ किया नहीं तो उसे सिर्फ मजा लेने के लिए मारना समूचे मानव जाति को कलंकित करता है. अतः इसके लिए जिम्मेवार उन कातिल सुरक्षाकर्मियों को सजा मिलनी ही चाहिए.

आपका
महेश

संगीता पुरी said...

उंची चारदीवारी वाले मकानों में आज हम खुद को भले ही सुरक्षित समझ रहे हो .. पर सभ्‍यता संस्‍कृति के विकास के क्रम में इन कुत्‍तों ने हमें सुरक्षा देने में जो सहयोग किया .. उसे भुलाना भी उचित नहीं !!

राज भाटिय़ा said...

वो छ इंसान नही हेवान ही होंगे...इन्हे सजा देना इस समाज का ही कर्तब्य बनता है