Wednesday, May 25, 2011

आर्ट का समर सीजन

पढ़ने-पढ़ाने से कुछ समय के लिए छुट्टियां. समर वैकेशन्स का अलग मजा है, खासकर आर्ट फील्ड में. यह दिन सीखने के होते हैं. समर कैंप्स तो है हीं, वर्कशॉप्स और आर्ट कैंप्स भी खूब आर्गनाइज होते हैं. इनकी इम्पॉर्टेंस है. आर्ट वर्ल्ड के खिलाड़ी यहां सीखते हैं और न्यू कमर्स को सिखाते हैं. हॉटी समर्स में कोई शहर ऐसा नहीं बचता जहां यह एक्सरसाइज न चले. हिल्स एरियाज़ की तो बात ही और है. वहां तो कला के जैसे मेले जुटते हैं हर साल. गर्मियों की छुट्टियों का सभी को बड़े दिनों से इंतजार रहता है. कइयों के दिन तो कैलेंडर में तारीखें गिन-गिनकर कटते हैं. सालभर की भाग-दौड़ से मुक्ति दिलाती हैं यह छुट्टियां. इसका क्रेज तो आर्ट वर्ल्ड में भी कम नहीं. आर्टिस्ट, स्टूडेंट्स और उनके टीचर्स काफी समय पहले से प्लानिंग शुरू कर देते हैं. इसके रीजन हैं, आर्टिस्ट इसे जहां एंजॉयमेंट के साथ ही कला सृजन का मौका मानते हैं, वहीं टीचर्स के लिए यह करियर और विजन एडवांसमेंट का जरिया है. आर्टिस्ट्स को कला रचने के लिए माहौल मिलता है, टीचर्स खुद को अपडेट करते हैं और स्टूडेंट्स महारथियों से सीखने के लिए आतुर रहते हैं. उन्हें वो प्रैक्टिकल टिप्स मिल जाती हैं जो क्लासरूम्स में पॉसिबिल नहीं. सीधी सी बात है कि लैंडस्केप को किसी इमेज से देखकर बनाना उतना इंट्रेस्टिंग नहीं जितना किसी हिल्स एरिया में जाकर. पहाड़ों का अलग मजा है, इसलिये काम का काम और ऊपर से फुलटॉस मस्ती. स्टूडेंट्स ग्रुप्स बनाकर ऐसे समर कैंप्स और वर्कशॉप्स में हिस्सा लेते हैं. आगरा से आकर बनारस में पढ़ रहा मेरा एक स्टूडेंट दोनों शहरों के अपने दोस्तों को लेकर कैंप्स में पार्टीसिपेट करता है. स्टेट कैपिटल्स रांची, पटना और
लखनऊ की तो बात ही क्या, जहां से ट्रेन के सीधे लिंक्स हैं और आर्ट स्टूडेंट्स की संख्या काफी है. कला की इस दुनिया में तो गोरखपुर, आजमगढ़, अलीगढ़ जैसे शहरों के स्टूडेंट्स भी प्लानिंग में पीछे नहीं. गाजीपुर में भी एक कैंप होता है जहां नदी पर रेत के किनारे आर्टिस्ट काम करते हैं और स्टूडेंट्स उनके काम से बारीकियां सीखते हैं. मेरे पास इन्फॉर्मेशन है कि इस बार नैनीताल, अल्मोड़ा, शिमला, मैक्लोडगंज जैसे हिल सिटींज़ पर आर्टिस्ट कैंप आर्गनाइज किए गए हैं. पार्टीसिपेशन पर पैसा चाहें ज्यादा न मिले, लेकिन आर्टिस्ट आम तौर पर ऐसे मौके छोड़ते नहीं. ग्रुप-वाई यानि यंग ग्रुप में शुमार विभिन्न शहरों के स्टूडेंट्स कंट्रीब्यूट करके हर साल कई कैंप्स और वर्कशॉप्स कराते हैं. खर्च ज्यादा न हो, इसके लिए एक आर्टिस्ट को रिसोर्स पर्सन के तौर पर बुला लिया जाता है और कई दिन तक चलता रहता है सीखने का सिलसिला. कुछ वर्कशॉप्स में तो न्यू कमर्स अपना पैसा देकर पार्टीसिपेट करते हैं. दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में आने वाले दिनों में होने वाली एक वर्कशॉप ऐसी ही हैं. स्टूडेंट्स चाहते हैं कि बड़े कलाकारों से वह सीखें. स्टूडेंट्स का
उत्साह मुझे तो इतना अच्छा लगता है कि मैं अपने खर्च पर उन्हें सिखाने में भी नहीं हिचकती. मेरा अपना एक्सीपीरिएंस है कि ऐसी वर्कशॉप्स स्टूडेंट लाइफ में बहुत प्रॉफिटेबल साबित होती हैं. कभी-कभार क्लासरूम्स में स्टूडेंट्स का कन्फ्यूजन प्रैक्टिकल ट्रेनिंग में दूर हो जाता है. हरियाणा में ऐसी एक वर्कशॉप बहुत सक्सेसफुल साबित हुई, जहां स्टूडेंट्स ने मिले सबक तत्काल ही कैनवस पर खूबसूरती से उकेर दिए. मेरठ में हुई एक वर्कशॉप में एमीनेंट आर्टिस्ट को बुलाया गया था, वहां टीचर्स ने भी स्टूडेंट्स की तरह सीखा और अपने एक्सपीरिएंसेज शेयर किए. खूब मजा आया. स्टूडेंट्स को लगा कि सीखने में जो कसर बाकी थी, वह पूरी हुई. खूब क्वेश्चन-आंसर्स भी हुए. कभी-कभी एक-दूसरे की टेक्निक्स देखकर कुछ नया उभर आने की पॉसिबिलिटी बन जाती है. सच में, बहुत यूजफुल हैं ऐसे इवेंट्स.

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