Sunday, June 15, 2008

अंदर की बात

आज कला जगत के आयोजनों की बात। ऐसे ज्यादातर आयोजन महज नाम भर के िलए होने लगे हैं। ताजा आयोजन पिश्चमी यूपी की केंद्रीय यूिनविर्सटी में हुआ। कार्यशाला थी, पर नए-पुराने कलाकार तीन िदन तक अपना काम िदखाने के मौके का इंतज़ार ही करते रहे और झेलते रहे पुरानी तकनीक पर काम करने वालों के भाषण। दमघोंटू माहौल में आर्ट मटेिरअल का इंतज़ार चलता रहा। कई बार कहे जाने पर समापन वाले िदन यह सामान िमला। और तो और छात्रों तक से ५०० रुपये फीस ली गई। आयोजक सीिनयर थी पर आत्म मुग्धा। मैंने एक सीिनयर और जाने-माने कलाकार के िचत्रों की तारीफ कर जैसे आफत मोल ले लीवह बोलीं- तुमने मेरा काम नहीं देखा? देखोगी तो सभी कलाकारों को भूल जाओगी। मेरे सामने वह कुछ भी नहीं हैं। वह उम्र के ५५-५६ वें पड़ाव पर हैं, अपने अब तक के कला जीवन में मैंने तमाम कलाकारों का काम देखा। याद नहीं आता, उनका काम िदखाई भी िदया हो, चर्चा बटोरना तो दूर की बात है। िफर िकसी साथी कलाकार की तारीफ पर जल-भुन जाना तो कलाकार का स्वाभाव नहीं होता। मैं नहीं समझती िक इस आयोजन से िकसी कला साधक को कोई लाभ िमला होगा, संस्था को लाभ तो दूर रहा। एक और आयोजन की बात करती हूँ। इस आयोजन के संयोजक एक कॉलेज के िशक्षक थे। िकसी को क्या प्रोत्साहन िमलेगा, जब संयोजक ही इनाम ले लें। मेरा मकसद स्वस्थ आलोचना है, कामना है कला जगत से बुराई दूर हो। नज़रें असली कला साधकों पर हैं। उम्मीद है िक ऐसा होगा जरूर। और उम्मीद पर ही तो दुिनया कायम है।

No comments: