Thursday, July 31, 2008

समस्या

अजीब सा लगता है। कला की दुिनया में नए-नवेले जो आ रहे हैं, उनमें कहीं-कहीं उत्साह नज़र नहीं आता। दरअसल, एक अजब सी जंग िछडी है भीतर ही भीतर। यह जंग है दो कोर्सेस के स्टूडेंट्स के बीच, बीए और बीऍफ़ऐ हैं यह दो कोर्स। बीऐ के स्टूडेंट्स के साथ जो रवैया अपनाया जा रहा है, वो कुंठा पैदा कर रहा है। वो उस गलती की सज़ा भोग रहे हैं जो उनकी है ही नहीं। इन स्टूडेंट्स में डर है की उन्हें वरीयता नहीं दी जायेगी। आगरा में प्रदर्शनी के दौरान एक स्टुडेंट ने यह कुंठा मेरे सामने जािहर की। डर लगा िक एक बड़ी समस्या जन्म ले रही है। मैंने समझाया, िडग्री की छोडो और प्रैक्िटकल बन जाओ। कला जगत की गितविधिओं पर बारीक नज़र रखो, हर आयोजन की जानकारी हो और जहाँ तक सम्भव हो, िहस्सेदारी भी करो। कलाकार का काम देखो, सीखो। बनारस िहंदू यूिनवर्िसटी, िदल्ली, बरोदा यूिनवर्िसटी जैसी संस्थाओं में जाकर काम देखने की कोिशश करो। गलेरिओं में घूमो। दरअसल, गलती िसस्टम की है। िसर्फ़ कोर्स शुरू भर कर िदए गए हैं। संसाधन जुटाए नहीं गए। स्टूडेंट्स को न िकताबी ज्ञान िमल रहा है, न व्यवाहिरक। नौकिरओं में िडग्री देखी जा रही हैं, योग्यता नहीं। पुरानी कुछ संस्थाओं में भी हाल िबगड़ रहा है। तमाम टीचर्स अपडेट नहीं होना चाहते, उन्हें िसयासत रास आ रही है। पेशे से उनका वेतन लेने भर का िरश्ता रह गया है। हालात सुधारना जरूरी है तत्काल। यहीं इमानदारी न रखी तो कौन जानेगा-पूछेगा हमें। िशक्षक होने के नाते बड़ा दाियत्व है हमारा। पहल हम ही करें तो बेहतर होगा।

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