Monday, August 11, 2008

उलटबांसी

ये ख़बर ख़ास तो है ही, ख़ुद को िववािदत कर चर्चा बटोरने और उसका लाभ उठाने की नीयत के कलाकारों को आइना िदखाने का जिरया भी है। पािकस्तान के कट्टरपंथी माहौल को तो सब जानते ही हैं, पर यह उसका दूसरा चेहरा है। अभी वहां के ़िफल्म जगत की हस्ती वीणा मिलक के nude फोटोग्राफ्स सामने आए ही थे ि एक और ख़बर िबना सनसनी फैलाये आ गई। शािकर अली और सईद अख्तर की कड़ी में कई नए नाम बखूबी जुड़ने लगे। इस्लामाबाद की नेशनल आर्ट गैलरी (10) में nude paintings की लम्बी सीरीज़ लगायी गई। पर इसमे ख़ास ये है िक इस गैलरी में 60 percent मिहला कलाकारों की िहस्सेदारी होती है। वो मकबूल िफ़दा हुसैन नहीं, जो मिहला का बेढब िचत्र बनायें और िसर्फ़ ख़बर बन्ने के िलए नीचे सरस्वती िलख दे। वो कला ही क्या, िजसे समझाने के िलए कलाकार को शब्दों का सहारा लेना पड़े। बार-बार एक ही स्टंट, कला का भौंडा बाजारीकरण। मैंने ग्वालियर में exhibition लगायी। श्रद्धा और मनु की मेरी चर्चित सीरीज़ वहां थी। पहला ही िदन था ि िवरोध शुरू हो गया। िशव सैिनकों की भीड़ पहुँच गई। नारे लगाये गए, कहा गया िक मैंने अपनी यह कामायनी सीरीज़ न हटाई तो बवंडर मच जाएगा। मैंने समझाया िश्रद्धा और मनु को इसी तरह िदखाना अपिरहार्य है। वो जब थे, तब कपड़े कहाँ थे? इसमे अश्लीलता कहाँ है? अँधा िवरोध यूहीं शांत हो गया। िशव सैिनकों ने स्वीकार िकया िक paintings िबना देखे िवरोध िकया, सुना भर था बस। उन्होंने भी देखा, मेरी बात उनकी समझ में बखूबी आ चुकी थी। मेरी यह सीरीज़ अख़बारों में खूब छपी, िबकी। हाथों-हाथ ली गई। कला समझाने के िलए मैंने मकबूल की तरह paintings के नीचे शब्द िलखकर उनका सहारा नहीं िलया। पािकस्तान में भी इसीिलए कट्टरता होने के बावजूद कला के इस रूप को स्वीकार कर िलया गया है। जो कला वहां लगी है, वो मकबूल की तरह जबरदस्ती नहीं समझाती बिल्क कला है इसिलए ख़ुद समझ में आती है। शायद मकबूल इस तरह भावनाओं को भुनाने का गन्दा खेल अब रोक दे।
यहाँ जरूर देखें मेरी यह सीरीज़-
http://uttamad.artistportfolio.net/

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