Thursday, October 16, 2008

कोटा की मार

रिज़र्वेशन या कोटा; सियासत के दो चर्चित, गरम और फायदेमंद शब्द, पर यह कहानी उनकी है जो मोहरा भर हैं। जिनका सियासत से कोई सीधा वास्ता नहीं। मुद्दा गर्म है, सुप्रीम कोर्ट ने ओ.बी.सी. के लिए तय कोटा की खाली सीट्स को जनरल स्टूडेंट्स से भरने की इजाज़त दी है। इस एक मुद्दे पर असमंजस का जो लंबा दौर चला, उसका नुकसान शिक्षा जगत अब भुगत रहा है। सीटें खाली हैं, पढाई चल रही है और अब सुप्रीम कोर्ट खाली सीटें भरने के लिए कह रहा है। नए स्टूडेंट्स कैसे पढाई कवर करेंगे, सोचना भी मुश्किल लग रहा है। यह कहानी है उन सात बदनसीब लड़कों की, जिनका दिल्ली यूनिवर्सिटी के कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स में ओ.बी.सी कोटा की लिस्ट में नाम था। कोर्स है B.F.A। APPLIED ARTS. यह लड़के नामचीन यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स थे। डी.यू का नाम वहां खीच ले गया। जिस दिन कोउनसल्लिंग थी, कोर्ट का स्टे आर्डर आ गया। प्रोसेस रुक गया। प्रिंसिपल ने भरोसा दिलाया और लड़के इंतजार करने लगे। इस लंबे इंतजार ने उनका पिछली यूनिवर्सिटी का प्रवेश भी खतरे में ड़ाल दिया। वहां अत्तेंदेंस शोर्ट होने लगी। हालाँकि उम्मीद उन लड़कों की तो बाकी थी जो क्लास में रेगुलर रहने की बदौलत किस्मत से यहाँ भी खड़े रह सकते थे। इन लड़कों ने कितना मानसिक तनाव झेला होगा, अंदाज़ लगा पाना मुश्किल नहीं। ऐसे कितने ही स्टूडेंट्स होंगे जो इस झमेले में अपना भविष्य दाव पर लगा बैठे। शुरुआत में ही इतनी बड़ी बाधा का असर निश्चित ही इन भविष्य के कलाकारों के हौसलों पर हुआ होगा। दुर्भाग्य से यह सोचने की फुर्सत राजनेताओं को तो नहीं है।

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