Tuesday, November 11, 2008

सियासत से आगे


बहती हुई आंखों की रवानी में मरे हैं, कुछ ख्वाब मेरे एन जवानी में मरे हैं, कब्रों में नहीं इसको किताबों में उतारो, हम लोग मोहब्बत की किताबों में मरे हैं... यह ख्वाब हैं कलाकारों के, आम हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी के। इन्ही कलाकारों की कला दिलों को जोड़ती है। उत्तर प्रदेश में दोनों मुल्कों के बीच मेल-मिलाप की खूब बातें हुई। पाकिस्तान से आये सात कलाकार व शायरों ने दिखा दिया कि भारत और पाकिस्तान भले ही देश के रूप में अलग-अलग हों लेकिन उनकी मिट्टी, सोच, तहजीब व संस्कृति एक है। लगने लगा, हवा चल पड़ी है। जल्दी ही दूरियां पट जायेंगी। कहा गया, हमें किताबें कम-असलहे ज्यादा दिये गये। हमें पहचानना होगा कि यह किसने और क्यों किया? पहले इलाहाबाद, कानपुर और फिर बनारस में हुई प्रदर्शनी में पाकिस्तानी चित्रकार नीलोफर जैदी और रेहाना काजमी ने चाँद की रौशनी में घर सजाने के लिए हलके रंगों का प्रयोग कर चित्रकारी का बेहतरीन नमूना पेश किया। बनारस में मुझसे रेहाना ने जो कहा उससे लगा की पाकिस्तानी भी हमसे और हमारे हिन्दुस्तान से कम प्रेम नहीं करते। रेहाना ने ऋषिकेश से अपनी कला यात्रा शुरू की। वहां एक आश्रम के साथ गंगा को कैनवास पर उतारने की कोशिश की। रेहाना भी आर्ट्स टीचर हैं। फैसलाबाद में सातवीं कक्षा में पढ़ रही नन्हीं फरीहा अकरम भी मोहब्बत का पैगाम लेकर यहां आयी। वह राग वागेश्वरी में गीत गाकर शास्त्रीय संगीत की जानकार होने की ताकीद करती है तो भजन मोरे मन भाये, भाये श्याम मुरारी, बतियां करत है प्यारी-प्यारी गाकर संदेश देती है कि चाहे राम कहो या रहमान दोनों एक ही हैं नाम। अच्छा लगा सभी को। अल्लाह करें या इश्वर, सियासत बंद हो और हमारी बिरादरी की यह कोशिशें रंग लानी चाहिए। यही वक्त की जरूरत भी है।

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