Sunday, December 7, 2008

आख़िर मिली कामयाबी

चंदौली जिले की चकिया तहसील का गांव घूरुपुर फिर चर्चा में है। इसी गांव के पास कैमूर की पहाडी पर मिले बौध्यकालीन भित्ति चित्रों के बारे में नई ख़बर आई है। यह वही पहाडी है जहाँ सीनियर जर्नलिस्ट सुशील त्रिपाठी एक स्टोरी के सिलसिले में गए थे, और हादसे ने उनकी जान ले ली। यह साबित हो गया है कि यह वो शिलालेख हैं जिन्हें सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में बौध्य धर्म के प्रचार के लिए लिखवाया था। ऐसे 17 शिलालेख पहले ही मिल चुके हैं। लेकिन यहाँ कोई हल-चल नहीं। उन दिनों यहाँ खूब हो-हल्ला था, रोजाना हजार के आस-पास लोग पहुँच रहे थे, श्रीलंका और तिब्बत से दल आए, मेला सा लग गया वहां। मैंने इंतज़ार किया, सोचा कि माहौल थोड़ा शांत होगा तब फुर्सत से भित्ति चित्र देखना संभव हो पायेगा। अब जैसा सोचा था, वैसा ही पाया, बल्कि उससे भी ज्यादा नॉर्मल। उम्मीद से उलट, सन्नाटा। वहां इक्का-दुक्का लोग पहुँच रहें हैं और सन्नाटा टूट नहीं पा रहा। यहाँ मिले भित्ति चित्र नष्ट ही हो जाते यदि गांववालों ने कांटे वाली झाडिओं से उन्हें घेरा होता। जो भी आता, चित्रों पर पानी के छींटे डालता ताकि साफ़ फोटो खींच पायें, जिससे इन चित्रों का रंग फीका पड़ गया है। खुशी की बात सिर्फ़ इतनी है कि हम पहादिओं में छिपे पुरातात्त्विक रहस्यों की तरफ़ थोड़ा बढ़ गए हैं। भित्ती चित्रों में भगवान् बुद्ध का चित्र और आस-पास में कलश हैं। बात तो अब भी यहाँ तक हो रही है कि भगवान् बुद्ध के पद चिन्ह इन्ही पहादिओं में कहीं हैं, हालांकि यह सब अभी अटकलबाजी ही है जब तक इतिहासकार इन्हें जांच लें। शुरूआती मेहनत के बाद प्रशासन जैसे सुस्ताने लगा है। सरकारी अमला शांत है। यह निराशाजनक बात है, लापरवाही कहीं घातक साबित हो जाए। हम में शायद कोई नहीं चाहता कि ऐसा हो।

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