Tuesday, December 30, 2008

एक थे बावा

बुरी ख़बर, सूफियाना शैली के आर्टिस्ट मंजीत बावा हमारे बीच से चले गए। तीन साल से कोमा में रहे, लड़े पर आख़िर में मौत से हार गए। बावा को संघर्ष का दूसरा नाम कहा जाता है। नवोदितों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए, 30 साल तक एक भी पेंटिंग न बिकने के बावजूद वो जीवटता से डटे रहे और तभी तो कला इतिहास की किताब का पन्ना बनने में कामयाब रहे। बावा बड़े कलाकार थे पर किसी विवाद के बजाये प्रेम, उम्मीद और शान्ति के अंतर्राष्ट्रीय थीम पर काम करके उन्होंने अपना कद बड़ा किया। चित्रकला में अपनी अलग शैली विकसित करने वाले बावा ने पशु-पक्षिओं के साथ आध्यात्म को प्रमुखता दी। उस ज़माने में जब, वेस्टर्न आर्ट वर्ल्ड में grey और brown का अधिकाधिक इस्तेमाल होता था, उन्होंने red और violet जैसे भारतीय रंगों का खूबसूरत तालमेल दिखाया। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें लाल रंग पसंद था इसलिए वो आकाश को भी इसी रंग में रंग देना चाहते थे। yellow जैसे कलर का उनका जैसा प्रयोग किसी ने नहीं किया. वो ऐसे बहादुर पेंटर थे, जिसमें पोपुलर ट्रेंड्स के विरुद्ध अपने प्रयोगों पर टिके रहने का साहस था। यह बावा का ही प्रयोग था कि दिल्ली के सिख विरोधी दंगों के 20 साल बाद हुए एक शो में उनके हर कैनवास से हिंसा के बजाये शान्ति का संदेश प्रसारित हो रहा था। उनकी आत्मकथा लिखने वालीं इना पुरी के यह शब्द बावा के बारे में कुछ भी और लिखने की गुंजाईश नहीं छोड़ते कि `Manjit' and `obituary' को एक ही sentence में लिखने की कल्पना भी नहीं की जा सकती क्योंकि वो जीवन से भरे थे। ऐसे सच्चे कलाकार को उनके अपने कलाजगत का सलाम।

1 comment:

Richa Joshi said...

मंजीत बाबा हमेशा कला जगत के साथ रहेंगे। उनकी कृतियां हमेशा उन्‍हें कला प्रेमियों के बीच में ही रखेंगी। बाबा सचमुच के कलाकार थे। जयपुर में मुझे एक सप्‍ताह उनके साथ रहने का मौका मिला तब मैने करीब से जाना बाबा को। शाम होते ही बाबा संगीत में डूब जाते। गायन होता, वादन होता और नृत्‍य भी। नजदीक से देखने के बाद ही जाना कि शीर्ष पर बैठे बाबा कितने सरल और सौम्‍य थे।