Saturday, January 17, 2009
ये जिज्ञासा, ये जुनून
रघु राय है इनका नाम, उम्र है करीब 67 साल। पर जीवट वाले इस फोटोग्राफर ने जैसे उम्र को धता बताने की ठान रखी है। बनारस में B.H.U के visual arts students से जब वो रू-ब-रू हुए तो यही लब्बोलुआब निकला कि हौसला हो तो कला पर न उम्र भारी होती है, न ही उसे कोई सीमा बाँध पाती है। उन्होंने कहा कि नई सोच रखें, ऑब्जेक्ट को अपनी नज़र से देखें। फोटोग्राफी हो या कला की कोई और विधा, इमोशंस दिखाई देना जरूरी है। स्टूडेंट्स ने उनसे कला की इस फोटोग्राफी विधा की बारीकी सीखीं. यह वही रघु राय हैं, जय प्रकाश नारायण के आन्दोलन में खींची जिनकी एक फोटो की वजह से तत्कालीन एक मंत्री को संसद में माफ़ी मांगने को मजबूर होना पड़ा था। फिर 1984 में भोपाल गैस काण्ड की मार्मिक फोटोग्राफी ने उन्हें चर्चा में ला दिया। बनारस उनका प्रिय विषय है। अपनी इस यात्रा में राय का मकर संक्रांति पर फोटोग्राफी का इरादा था पर ख़राब मौसम आड़े आ गया। लेकिन हौसला फिर भी उफान पर था। उत्साह देखते ही बनता था। जहाँ फोटोग्राफी का कोई संभावित विषय दीखता, वो चल पड़ते। न कार की चिंता, और न रिक्क्षा की। बच्चों जैसी जिज्ञासा और जवानी जैसा जुनून, कहीं से भी उम्र बाधक नहीं। लगने लगा कि गधे के बच्चे को खूब दौड़ाकर अपनी पहली चर्चित तस्वीर खींचने वाले रघु जितना उस समय दौड़े होंगे, उतना ही आज भी दौड़ सकते हैं। मेरे सहयोगी शिक्षक डॉक्टर मनीष अरोरा का कहना था कि राय के साथ गुजरा वक्त रोमांचकारी था। मनीष काफ़ी वक्त उनके साथ रहे और घूमे। सीनियर जर्नलिस्ट हरि जोशी उनके एक चित्र का जिक्र करते हुए बताते हैं, जब रघु STATESMAN में थे। इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी जब जनता दल की आंधी में उड़ गईं तब रघु राय ने लाल किले की बैकग्राउंड में एक फोटो एक्सपोज किया था। एक स्वीपर झाड़ू लगा रहा है और अपने तसले में कूड़ा इकट्ठा कर रहा है। तेज हवा है। इंदिरा का एक पोस्टर आधा तसले में है और आधा बाहर जिसे वह झाड़ू से तसले में डालने को प्रयत्नशील है। ये अकेला छायाचित्र कई संपादकीय टिप्पणियों पर भारी था।
(ABOVE IMAGE:-My Father and My Son, a B/W photograph by Raghu Rai of just the hands of an old man and a child entangled in each other. Just looking at the photograph one can deduce the emotions that aren’t visible in the frame.)
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5 comments:
रघु पर बहुत कम लेकिन सटीक लिखा है आपने। उनके एक चित्र का जिक्र करना चाहूंगा जब वह स्टेटस्मेन में थे। इमरजेंसी के बाद इंदिरा जब जनता दल की आंधी में उड़ गईं तब उन्होंने लाल किले की बैकग्राउंड में एक फोटो एक्सपोज किया था। एक स्वीपर झाड़ू लगा रहा है और अपने तसले में कूड़ा इकट्ठा कर रहा है। तेज हवा है। इंदिरा का एक पोस्टर आधा तसले में है और आधा बाहर जिसे वह झाड़ू से तसले में डालने को प्रयत्नशील है। ये अकेला छायाचित्र कई संपादकीय टिप्पणियों पर भारी था।
रघुराय भारतीय फोटोग्राफी के मील के पत्थर हैं।
रघु राय की खींची हुई तस्वीर और आपकी प्रस्तुति दोनों अच्छी लगी...
उत्तमा जी,
मैं रघु राय को तो नहीं जानता लेकिन जो चित्र आपने लगा रखा है, वह सुपरब है। मैं चाहूँगा कि आप इनके द्वारा लिये गये और फोटोग्राफ हमें दिखाएँ।
nice article uttama ji
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