Friday, April 24, 2009

भद्दा मज़ाक...

ये मज़ाक है दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के साथ, बेशर्मी है राजनेताओं की और जनता के खून-पसीने की कमाई का सरासर दुरूपयोग। पंद्रहवी लोकसभा के चुनावों का भारी-भरकम खर्च उठाकर जैसे ही अपना देश बमुश्किल राहत की साँस लेकर चुकेगा, इन चुनावों की वजह से रिक्त हुई राज्यसभा और राज्यों की विधान सभाओं की सीटों पर निर्वाचन की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। राज्यसभा के 16 मेंबर लोकसभा के लिए मैदान में हैं, इसी तरह कई विधानसभा सदस्य भी दिल्ली की राह पर जाने को हाथ-पैर मार रहे हैं। जो जीत जायेंगे, उनकी राज्यसभा या विधानसभा की सीट पर फिर चुनाव कराने पड़ेंगे। भाजपा ने फिलहाल राज्यसभा के सदस्य मुरली मनोहर जोशी, सुषमा स्वराज, जसवंत सिंह, विनय कटियार, राजीव प्रताप रूडी, शत्रुघ्न सिन्हा और दिलीप सिंह जूदेव को लोकसभा के दंगल में उतारा है तो राकांपा ने अपने सुप्रीमो शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले और पार्टी में नम्बर दो के नेता तारिक अनवर को। बड़े नेता फारूक अब्दुल्ला को उतारने वाली नेशनल कांफ्रेंस हो या बसपा या जनता दल (U) या फिर इनेलो, इस मामले में कोई भी पीछे नहीं। दिग्विजय सिंह तो निर्दलीय ही चुनाव लड़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी हो या सत्तासीन बसपा, हर दल ने अपने कई विधायकों को टिकट दी है। पर ऐसा हो क्यों रहा है? अजब तिकड़मबाज़ी है या शायद लाचारी, राजनीतिक दलों के पास अच्छे प्रत्याशिओं की कमी है और अच्छे लोग राजनीति में आना ही नहीं चाहते। दूसरा कारण है कि नेता जनता के ठुकराने के बाद चुपचाप बैठने के बजाये अन्य सदनों में आ जाते हैं, सुविधाओं की चाट उन्हें घर बैठने नहीं देती। तीसरा, सियासी दलों को किसी भी तरह सत्ता तक पहुचना है।
लेकिन इसका खामियाजा भुगतेगी देश की जनता। राम-राम कहकर एक चुनावों से मुक्ति मिलेगी तो दूसरा दस्तक देने लगेगा। फिर सख्ती की नाटकखोरी, संसाधनों पर खर्च और खुदा की नज़र फिरी तो हिंसा। टैक्स के रूप में वसूला गया जनता का पैसा पानी की तरह बहाया जाएगा। अपना देश लोकसभा के चुनावों पर तकरीबन 10000 हज़ार करोड़ रुपये खर्च कर रहा है। सेण्टर फॉर मीडिया स्टडीज के मुताबिक पिछले चुनावों की तुलना में यह खर्च करीब 60 फीसदी बढ़ा है। इसके अलावा राजनीतिक दल भी बड़ा खर्च करते हैं। आन्ध्र प्रदेश के बारे में आंकलन है कि वहां चुनावों में तीन बड़े राजनीतिक दल 3600 करोड़ रुपये खर्च करने जा रहे हैं जिससे 1000 किलोमीटर सिक्स लेन रोड बन सकती है। यह हाल तो तब है, जबकि चुनाव आयोग ने खर्च की सीमा तय कर रखी है। प्रत्याशी सीमा से कई गुना ज्यादा खर्च करते हैं। सवाल है कि यह रुके कैसे? हम मतदाताओं को अभियान चलाकर ऐसे प्रत्याशिओं के साथ ही एक से ज्यादा सीटों से चुनाव लड़ने वाले नेताओं का बहिष्कार करना होगा। बदलाव की उम्मीद तो इसके बाद ही करना बेहतर होगा।

14 comments:

Unknown said...

dhanybad,
aapne ek bade hi sahi vishay par prakash dala hi.

apka

anand

श्यामल सुमन said...

हकीकत से आँखें मिलाती आलेख।

जनता के उत्थान की फिक्र इन्हें दिन रात।
मालदार बन बाँटते भाषण की सौगात।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

उत्तमा जी।
आपने सही समय पर सही मुद्दा उठाया है, वाकई
ये मज़ाक दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के साथ बेशर्मी है।
पर कानून में बदलाव की इन मक्कारों उम्मीद रखना बेकार है।
इस देश का भगवान ही मालिक है।

शब्द पुष्टिकरण हटा दें।
टिप्पणी करने में कष्ट होता है।

Anil Pusadkar said...

लोकतंत्र मे लोक यानी लोगो से मज़ाक बस हो रहा है।आप ये वर्ड वेरिफ़िकेशन का टैग हटा दें तो कमेण्ट करने मे आसानी होगी॥

Hari Joshi said...

सवाल उठता है कि आखिर बदलाव कौन लाएगा। आप जिस शहर और कैंपस में हैं उसी कैंपस में मतदान का प्रतिशत केवल अठारह फीसदी रहा है। इससे बड़ा दुर्भाग्‍य और क्‍या हो सकता है।

Dr. Ravi Srivastava said...

बहुत ही विचारणीय व सारगर्भित लेख लिखा है आप ने. उम्मीद है की लोगों में इसके प्रति जन-जागृति होगी.

...

हिन्दी के लिक्खाड़ said...

gd one

आशीष कुमार 'अंशु' said...

Sundar Post

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

आप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।
मैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को
ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीन
है कि आप को ये पसंद आयेंगे।

Unknown said...

it is a nice blog

P.N. Subramanian said...

हमें तो लगने लगा है कि लोकतंत्र कि वर्त्तमान प्रणाली हमारे लिए उपायुक्त नहीं है. अनिल पुसदकर जी के सुझाव पर ध्यान देने कि आवश्यकता है.

मोहन वशिष्‍ठ said...

बिल्‍कुल सच्‍चाई बयां की है आपने जागरूकता लाने वाली पोस्‍ट है आपकी बहुत बहुत बधाई

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

आपने बहुत बढिया तरीके से इस मुद्दे को उठाया.....किन्तु देखा जाए तो हमारे देश में इस लोकतान्त्रिक प्रणाली में ही ढेरों कमियां है.जिन्हे दूर किए बिना किसी सार्थक बदलाव की उम्मीद रखना भी बेमानी होगा.

हिमांशु डबराल Himanshu Dabral (journalist) said...

अपने बहुत बढ़िया आलेख लिखा है...सच में ये लोकतंत्र दस साथ भद्दा मजाक हो रहा है, और इस ओर बहुत कम लोगो का ध्यान जा रहा है|