मैं तो अभी तीन-चार साल पहले त्रिअनन्तपुरम गयी थी वहाँ राजा रवि वर्मा की पेंटिंगस देखी थी मन खुश हो गया था लेकिन क्या पता था यह सब नकली है। बड़ा ही दुखद प्रसंग हैं। हम पैसों के लिए कुछ भी कर सकते हैं। जानकारी देने के लिए आभार।
चर्चित लेखिका अरुंधती के न्यूड चित्रण पर बहस में करें हिस्सेदारी। साथ ही मेरी कामायनी पर भी चर्चाएं
http://mishraarvind.blogspot.com/
फोटो पर क्लिक करें और पढ़ें :- उत्तमा दीक्षित की तूलिका लता जी-मदन मोहन साहब के सुर
उत्तमा दीक्षित जी की तूलिका से उभरे चित्र को इस गीत के सन्दर्भ में देखिये, माई रे मैं कासे कहूं... फिल्म दस्तक के इस गीत को लता मंगेशकर-मदन मोहन ने गाया है, वायलिन पे सुना जाए तो प्रभाकर जोग साहब का कमाल भी कम नहीं. आज़ जिस भाव से इस चित्र को देखा तो तुरंत दस्तक के गीत का याद आना मेरे लिये रोमांचित करने वाला एहसास था...
यहां पढ़िए मेरा लेखः लोककलाओं पर कारखानों का कब्ज़ा
कलाओं की मार्केटिंग असली कलाकारों के हाथ में नहीं है , लोकगीतों के शौक़ीन जो खरीद रहे है, वो या तो नकली है या किसी कलाकार ने अपनी आत्मा मारकर किसी फैक्टरी में बनाया है. |एक अन्य प्रोजेक्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि लोक कलाओं के लिए सबसे ज्यादा प्रसिद्ध राजस्थान मे भी यही हाल है. वहां के लोककलाओं पर कलाकारों का नहीं संगीत बेचने वाले कारखानों का कब्ज़ा है.
मैंने कैसे रची कामायनी-उत्तमा (पेंटिंग पर क्लिक करें और शामिल हों रोचक बहस में)
उत्तमा की रचना श्रृंखला, कामायनी की एक पेंटिंग मैंने पिछली बार लगायी थी। बहुत से लोग जानना चाहते थे कि ऐसी नग्नता क्या कला में आवश्यक है? यह असहज नहीं लगता, जानबूझकर ज्यादा दर्शक जुटाने या विवाद बढ़ाकर चर्चा में आने के लिये तो कलाकार ऐसा नहीं करते। इन प्रश्नों पर मैंने कामायनी की रचनाकार से ही जानना चाहा कि वास्तव में सच क्या है? यहां कामायनी श्रृंखला की कुछ और रचनायें और उत्तमा के विचार भी दिये जा रहे हैं। आप इस बहस को आगे बढ़ाने के लिये आमंत्रित हैं।
नीचे पेंटिंग पर क्लिक करें और देखें वरिष्ठ पत्रकार सुभाष राय के ब्लॉग पर कामायनी।
उत्तमा एक कलाकार के नाते मुझे बहुत प्रिय है। उसने महाकवि जय शंकर प्रसाद की कामायनी पर आधारित पेंटिंग्स की श्रृंखला बनायी है, उसी में से एक मैंने चुनी थी। मुझे पहले से यह डर था कि इस पर लोग एतराज कर सकते हैं, इसमें लोगों को अश्लीलता नजर आ सकती है। यह डर सहज था क्योंकि अपनी तमाम प्रगतिशील सोच के बावजूद मन के किसी बहुत गहरे कोने में एक परम्परावादी व्यक्ति सिकुड़कर बैठा हुआ है, यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं होता।
... एक नज़र इधर भी
अफगानिस्तान में अपने शौहर के घर को छोड़ने की सजा के तौर पर तालिबान के हाथों अपने नाक-कान कटवाने वाली अफगानी महिला बीबी आयशा की इस फोटो के लिए दक्षिण अफ्रीकी फोटोग्राफर जोडी बीबर को वर्ष 2010 के वर्ल्ड प्रेस फोटोग्राफर अव़ॉर्ड प्रदान किया गया है। यह फोटो टाइम पत्रिका के कवर पेज पर प्रकाशित हुई थी।
Till now i have travelled from the ghats of Benaras to the city of Taj. The journey began on 25 January, when i was born in the city of Baba Vishwanath. I spent my childhood days in Mirzapur. From there i was back to the city of my birth Varanasi. The enlightment in the form of formal education came at the campus of Banaras Hindu University (BHU). Later i moved on to the city of love monument Tajmahal. The teaching career began as lecturer in a PG college ie. AGRA COLLEGE. Now i am at my alma mater BHU but as a senior lecturer. The creativity inside me has got manifestation in the form of art works which have been displayed in more than four dozen exhibitions. Expression has been in the form of use of oil and acrylic.
15 comments:
बेहद दुखद हालात हैं
हर जगह हेराफेरी .. आज के युग में पैसी ही सबकुछ हो गया है .. किसी की भावनाओं और भविष्य से खिलवाड करना कोई मुश्किल काम नहीं।
ऐसे हालातों में बदलाव की पहल की जानी चाहिए... थोड़ी समझदारी की आवश्यकता है।
बहुत ही शर्मनाक बात है इस तरह की बातों से देश की छवि भी धूमिल होती है । एक सलाह है कि आप इस वर्ड वैरिफ़िकेशन को हटा दे इससे कमेंट मे परेशानी आती है ।
Really shocking but i m worried perhaps no any media house has published it...
मैं तो अभी तीन-चार साल पहले त्रिअनन्तपुरम गयी थी वहाँ राजा रवि वर्मा की पेंटिंगस देखी थी मन खुश हो गया था लेकिन क्या पता था यह सब नकली है। बड़ा ही दुखद प्रसंग हैं। हम पैसों के लिए कुछ भी कर सकते हैं। जानकारी देने के लिए आभार।
जब सरकार ही चोर उचको की हो तो यह सब तो होगा ही,
बेहद शर्मनाक घटना है....जानकर काफी आघात पहुंचा है....क्या देश के किसी हिस्से में ईमानदारी का अवशेष मात्र भी शेष बचा है....
बेहद निन्दनीय कृत्य है, दर्शको को धोखा देने से क्या फायदा। जब ऐतिहासिक धरोहरो की सुरक्षा नही कर सकते तो संग्रहालय खोलना व्यर्थ है।
article achha he.badi mehnat he. we are agreed with the writer.
सादर,
माणिक
manik
सदस्य,राष्ट्रीय कार्यकारी समिति, स्पिक मैके
आकाशवाणी उद्घोषक,
विभागीय अध्यापक,
567673434 पर एसएमएस भेजें
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बेहद निन्दनीय और शर्मनाक....
और हमारे मीडिया ने तों इस खबर को एक बार भी नही दिखाया.... खैर उन्हें इसमें टी आर पी नही नज़र आई होगी....
Himanshu Dabral
आपका लेख सभी देश वासियों के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है!
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yah nitant dukhdayi ghatna hai.sk janch avasha honi chahiye par mujhe nahi lagta aishe halat me koi bhi sanstha nispaksh janch karegi.
हैरत में हूँ
ऐसा कैसे हो सकता है ?
मीडिया ने ऐसी खबर की अनदेखी कैसे कर दी ?
कितने अफ़सोस की बात है हम अपनी ऐतिहासिक धरोहरों को भी संभाल कर नहीं रख सकते !
कृपया वर्ड वैरिफिकेशन की उबाऊ प्रक्रिया हटा दें !
इसकी वजह से प्रतिक्रिया देने में अनावश्यक परेशानी होती है
तरीका :-
डेशबोर्ड > सेटिंग > कमेंट्स > शो वर्ड वैरिफिकेशन फार कमेंट्स > सेलेक्ट नो > सेव सेटिंग्स
आज की आवाज
विवरण पढ़कर बहुत afsos हुआ. nishchit रूप से kendreey anveshaN sansthaan द्वारा jaanch की jaani चाहिए. abha
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