मुझे पता है कि यह हेडिंग अखबारों में आम तौर पर कब लगाई जाती है। मैं कलाकार हूं और किसी अन्य कलाकार के लिए इस तरह की बात करना भी नहीं चाहूंगी। चाहती हूं कि मकबूल हजार साल जीएं। बेशक वो कलाकार हैं। मैं या कोई और उनके कलाकार रूप में कमी निकाले तो ठीक नहीं लेकिन वह अपना देश छोड़कर चले गए। हुसैन जिस प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप (पैग) से जुड़े थे, उनमें सैयद हैदर रजा और सूजा भी विदेश गए और वहीं बस गए लेकिन अपने देश के खिलाफ बोले नहीं। हुसैन ने जो किया, उसे ढेरों कलाकार भी हजम नहीं कर पाए। फेसबुक, आरकुट जैसी कम्युनिटी वेबसाइट्स तक पर उनके विरोध में आवाजें हैं। विरोध है तो क्या, कलाकार का विरोध होता रहता है पर मकबूल का विरोध इसलिये हुआ क्योंकि उन्होंने कला का इस्तेमाल किया। अरे, हम भी कलाकार हैं। कला बनाएं, तो लोग समझें। खुश हो या नहीं, फर्क नहीं पड़ता। लोगों को आनंद मिले या नहीं, शायद कभी-कभी यह भी मुद्दा नहीं होता लेकिन लोग समझें नहीं तो हम जबरन समझाने लगें? एक महिला बनाएं और नीचे लिखकर समझाएं कि यह देवी सरस्वती, पार्वती या दुर्गा हैं, यह ठीक है क्या? साफ कह दिया कि भारत ने मेरा बहिष्कार किया इसलिये मैं कतर की नागरिकता स्वीकार कर रहा हूं। उन्हें शिकायत है कि दक्षिणपंथी संगठनों ने उनके मुस्लिम होने पर नहीं बल्कि कला और अभिव्यक्ति पर हमला किया था। मैंने सिर्फ अपनी आत्मा की अभिव्यक्ति को उकेरा था। वो कहते हैं कि मुझ पर हमला हुआ तो सरकार, कलाकार और बुद्धिजीवी सब चुप रहे। नेताओं के लिए सिर्फ वोट अहम हैं। मकबूल वहां तक पहुंचे कैसे अगर उनके खिलाफ भारत में इतना खराब माहौल था? मैं जानती हूं कि न्यूड फिगर बनाना अपराध नहीं बल्कि जब कला की जरूरत होती है तब बनानी होती है। पर जरूरत सिर्फ एक ही तरह के चित्रों में हो, मकसद विवादित होकर प्रसिद्धि पाना हो तो गलत है। हमेशा हिंदुओं के आराध्यों में ही उन्हें क्यों न्यूडिटी दिखाई दी। मेरे पास उनकी कलाकृतियों की फोटो हैं, लगा रही हूं इस पोस्ट के साथ जो उनके अपनों की है और शालीन वेशभूषा में (संलग्न चित्र उनकी मां, बेटी और एक मुस्लिम महिला की पेंटिंग के हैं)। क्यों उन्होंने अपनी मां को बख्श दिया, मां ने भी तो कभी उन्हें दूध पिलाया होगा। वह अंग उन्हें क्यों नहीं दिखाई दिए, उन अंगों की वह कल्पना क्यों नहीं कर सके? अरे, मां की पेंटिंग बनाते तो वल्गैरिटी भी नहीं दिखती और चर्चा भी मिलती क्योंकि मां तो मां है। मां तो तमाम कलाकारों का सब्जेक्ट बनी है। हुसैन क्या थे? भारत ने उन्हें बनाया। कला और अभिव्यक्ति की उनकी आजादी पर प्रहार हुआ तो हमलावरों से हजारों-लाखों गुना ज्यादा लोग उनके साथ खड़े थे। यह उनके प्रशंसक थे, हिंदू या मुसलमान नहीं थे। जिस मुस्लिम देशों में जाकर वह भारत के खिलाफ बोल रहे हैं, वहां धारा के खिलाफ मुंह खोलकर तो देखें। सरेआम कोड़े पड़ते हैं, हाथ काट लिये जाते हैं। देश आज भी उनके स्वागत के लिए तैयार था। तस्लीमा भी विवादित हैं लेकिन सुरक्षित भी यहीं हैं। वोट की सियासत होती है यहां लेकिन तुष्टिकरण की राजनीति करने वालों के राज में तस्लीमा जैसे भी महफूज हैं। हुसैन को इस देश से बहुत-कुछ मिला है, कुछ सुन लिया तो दुख कैसा? फिर बोलने वाले बहुसंख्यक तो नहीं थे बल्कि बहुसंख्यक समुदाय के अल्पसंख्यक थे। हुसैन ने गलत फैसला किया। वह कई साल से देश से बाहर रह रहे थे, आज अचानक ऐसी नौबत क्यों आ गई कि भारतीय नागरिकता छोड़ दी। पूरी उम्र कमाते रहे आप, 93 साल में भारत बुरा लगने लगा। इसके पीछे वजह हैं, शायद भारत के विरुद्ध किसी देश का इंस्ट्रूमेंट बन गए वो। एमएफ हुसैन, हमें आपसे यह उम्मीद नहीं थी। आपकी कलाकार बिरादरी को तो बिल्कुल ही नहीं।
(उनकी मां)
(उनकी बेटी)
(एक मुस्लिम महिला)
(सरस्वती)
Sunday, March 7, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
12 comments:
very good !!
meri post yahan padh lein ...
http://swapnamanjusha.blogspot.com/2010/03/blog-post.html
aur yahan bhi :
http://swapnamanjusha.blogspot.com/2010/02/blog-post_19.html
बहुत ही संतुलित विचार।
फतवा देने वाली एक जमात है जिसे राष्ट्र के बारे में बात करने वाला हर व्यक्ति संघी लगता है। अगर आप कश्मीरी हिन्दुओं की बात कीजिए तो प्रतिक्रियावादी हो जाते हैं। यदि आप उनके दोगले मानकों को उजागर करें तो फासिस्ट हो जाते हैं ... ये लोग अपनी विचारधारा के सड़ियल शब्दकोष की अबूझ टर्मिनोलॉजी में किसी को फिट किए बिना उसका मूल्यांकन नहीं कर सकते। इनके कानों में फिल्टर लगे हैं, सिर्फ वही सुनाई देता है जो सुनना चाहते हैं, बाकी या तो सुनाई नहीं देता या शोर शराबा लगता है।
हुसैन के विरोध को ये लोग मुस्लिम विरोध मानते हैं। अच्छा लगा जो आप ने हुसैन की मानसिकता को अनावृत्त किया।
आपने सही जगह हिट किया है. धन्यवाद.
सादर वन्दे
इतनी अच्छी तरह से आप ने इस विषय को रखा है की कुछ और कहने की जरुरत नहीं महासूश हो रही है,
इस बेहद ही अच्छे आलेख के लिए धन्यवाद.
रत्नेश त्रिपाठी
बहुत उम्दा सवाल उठाया है आपने...
‘हमेशा हिंदुओं के आराध्यों में ही उन्हें क्यों न्यूडिटी दिखाई दी। मेरे पास उनकी कलाकृतियों की फोटो हैं, लगा रही हूं इस पोस्ट के साथ जो उनके अपनों की है और शालीन वेशभूषा में (संलग्न चित्र उनकी मां, बेटी और एक मुस्लिम महिला की पेंटिंग के हैं)। क्यों उन्होंने अपनी मां को बख्श दिया, मां ने भी तो कभी उन्हें दूध पिलाया होगा। वह अंग उन्हें क्यों नहीं दिखाई दिए, उन अंगों की वह कल्पना क्यों नहीं कर सके?’
यही सवाल मेरे अल्पविकसित दिमाग़ में भी उठा था, जब आपके यहां ही शायद...मनु और श्रृद्धा/शतरूपा के न्यूड़ चित्रों की श्रृंखला से गुजरना हुआ था....
पता नहीं आप अपनी मां के चित्र किस तरह से बनाएंगी...जबकि श्रृद्धा/शतरूपा भी पौराणिक रूप से हम सबकि मां ही है...
शायद अपने आप से सवाल करना सबसे ज्यादा मुश्किल होता है....पता नहीं....
बस यूं ही...
so caaled secularists have dual faces,on one hand they want to benifit out of controversies and than again as greedy fellows these sudo again want to cash out on the reactions.i am not a painter but if i would have been i would love to paint a painting of this maqbool hasans daughter and mother in nude in sexy posture and than called them halima or something.rather than sarswati.with apologies to muslim brethren and rebuke to stupid hussain.
मनु और श्रद्धा में अंतर है साहब। इसे जयशंकर प्रसाद ने प्रलय के पश्चात रचा है लेकिन शायद वह भी कट्टरपंथियों की वजह से ईमानदार नहीं रह पाए। प्रलय के बाद का चित्रण करना है तो क्या श्रद्धा के लिए स्पेशल वस्त्र रचे जाएंगे। बेशक, मकबूल और आपकी कामायनी में अंतर है। मकबूल फिदा हुसैन प्रचार का भूखा आदमी है और नग्न चित्र के नीचे सरस्वती लिखकर समझाता है। कलाकार की अभिव्यक्ति की आजादी तब औऱ मजा देती है जब समझदारी से इसका इस्तेमाल किया जाए।
मनु और श्रद्धा में अंतर है साहब। इसे जयशंकर प्रसाद ने प्रलय के पश्चात रचा है लेकिन शायद वह भी कट्टरपंथियों की वजह से ईमानदार नहीं रह पाए। प्रलय के बाद का चित्रण करना है तो क्या श्रद्धा के लिए स्पेशल वस्त्र रचे जाएंगे। बेशक, मकबूल और आपकी कामायनी में अंतर है। मकबूल फिदा हुसैन प्रचार का भूखा आदमी है और नग्न चित्र के नीचे सरस्वती लिखकर समझाता है। कलाकार की अभिव्यक्ति की आजादी तब औऱ मजा देती है जब समझदारी से इसका इस्तेमाल किया जाए।
मकबूल फिदा हुसैन के बारे में आपका एक-एक शब्द सत्य है। बेहद स्वार्थी हैं वो। भारत ने उन्हें बहुत-कुछ दिया है। कुछ साल पहले ही गृहमंत्री ने उन्हें भारत में रहने के लिए व्यक्तिगत आग्रह किया था, दोबारा वो यह क्यों चाहते थे। क्यों कतर में बस गए। रही बात आपकी कामायनी सीरीज की वो मैंने आपके पिकासा वेब और आरकुट पर देखी है। बेहद खूबसूरत है वह। सच है कि कामायनी जैसी कृतियों के लिए कलाकार को स्वतंत्रता सुखदेय होती है। आप कामयाब रही हैं लेख और पेंटिंग में। बधाई
डॉ. कीर्ति शर्मा, प्रोफेसर डाक्टर भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी आफ लॉ.
मकबूल फिदा हुसैन के बारे में आपका एक-एक शब्द सत्य है। बेहद स्वार्थी हैं वो। भारत ने उन्हें बहुत-कुछ दिया है। कुछ साल पहले ही गृहमंत्री ने उन्हें भारत में रहने के लिए व्यक्तिगत आग्रह किया था, दोबारा वो यह क्यों चाहते थे। क्यों कतर में बस गए। रही बात आपकी कामायनी सीरीज की वो मैंने आपके पिकासा वेब और आरकुट पर देखी है। बेहद खूबसूरत है वह। सच है कि कामायनी जैसी कृतियों के लिए कलाकार को स्वतंत्रता सुखदेय होती है। आप कामयाब रही हैं लेख और पेंटिंग में। बधाई
डॉ. कीर्ति शर्मा, प्रोफेसर डाक्टर भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी आफ लॉ.
umda, santulit, vicharniya aur adbhut post...
Post a Comment