Wednesday, May 12, 2010

समर कैंप में कलाबाजी

उफ! गर्मियों ने बुरा हाल करना शुरू कर दिया है. इलेक्ट्रिसिटी जैसी ढेरों प्रॉब्लम्स सामने खड़ी हैं जो हाल बेहाल कर रही हैं. लगभग सभी शहरों के यह हालात हैं. अप्रैल से लगभग सितंबर तक चलने वाला समर सीजन कलाकारों के लिए भी कष्ट का होता है पर पर्सनली ही, प्रोफेशनली नहीं. कई जगह समर वैकेशन शुरू हो गया है तो कहीं शुरू होने वाला है. आर्ट स्टूडेंट्स के लिए कुछ कर दिखाने के दिन हैं ये. महीने-डेढ़ महीने के थकाऊ एक्जामिनेशन पीरिएड के बाद आराम के बजाए काम में जुटना है उन्हें. तैयारियां भरपूर हैं. किसी की प्लानिंग घूमकर लैंडस्केप में महारथ हासिल करने की है तो कोई स्कैचिंग करेगा और कोई समर कैंप्स में प्रतिभा निखारेगा. वहीं किसी ने अपने शहर-गांव न जाकर पूरा समय आर्ट के लिए यूटीलाइज करने की सोची है. मैं नहीं जानती कि किसी स्टूडेंट ने छुट्टियां आराम से बिताने का डिसीजन लिया हो. सही मायने में तो गर्मियों के यह दिन आर्ट फील्ड में नई कोपलें फूटने के हैं. अन्य फील्ड्स में जहां काम गर्मी में प्रभावित होता हैं, वहीं आर्ट में नई फसल उगती है. समर कैंप्स में तमाम बच्चे आर्ट को करियर बनाने का मन बनाते हैं, क्रिएटिविटी डेवलप होती है. वहीं यूजी-पीजी आर्ट स्टूडेंट्स कूची-कैनवस के खेल में और बहुत-कुछ सीख लेते हैं.
दिन जब बोरियत से भरा हो तो समर कैंप्स भला क्यों रास नहीं आएं? एंज्वॉयमेंट के साथ ही सीखने का भरपूर मौका जो है यहां. आर्ट फील्ड में यह कैंप बड़ा रोल अदा करते हैं. शहरों में तमाम समर कैंप आर्ट सिखाते हैं. कुछ फायदा हो या न हो, तमाम बच्चे यह तो जान ही जाते हैं कि कैसे हाथ साधकर ब्रश चलता है? कलर कैसे यूज किए जाते हैं? टाइम की लिमिट तय हो तो कैसे कोई आर्ट पूरी की जाती है? यह सब-कुछ सीख लिया तो क्या कहने. मैं नहीं कहती कि कैंप आर्गनाइज करने वाले सभी लोग ईमानदारी से काम करते हैं. यह सच है कि ढेरों लोगों के लिए यह सिर्फ कमाई का जरिया है लेकिन आर्ट के तमाम स्टूडेंट्स और स्ट्रगलर्स इन्हीं कैंप्स के जरिए कुछ महीने रेगुलर कमाई कर लेते हैं. बनारस में मेरे स्टूडेंट्स को यह असानइमेंट मिले हैं. अलीगढ़ एक्जाम लेने गई तो पता चला कि वहां के तमाम समर कैंप्स में एएमयू के फाइन आर्ट स्टूडेंट्स पार्टिसिपेंट्स को सिखाते हैं. आगरा में वहां के ललित कला संस्थान के स्टूडेंट्स यह काम बखूबी करते हैं. लखनऊ, कानपुर, मेरठ हो या फिर बरेली, सभी जगह यह चल रहा है. देहरादून में तो हिल एरिया बोनस हैं कैंप्स पार्टिसिपेंट्स के लिए.
छुट्टियां शुरू होने से पहले एक्जाम्स के दौरान ही स्टूडेंट्स हम टीचर्स से यह पूछने लगते हैं कि समर कैंप्स कहां लग रहे हैं और उनमें कैसे पार्टिसिपेट करें. कुछ अपने दम पर तलाश लेते हैं. बिहार-झारखंड के कई स्टूडेंट हैं बीएचयू में, मुझे बताया है उन्होंने कि वह छुट्टियां तो घर में बिताएंगे ही, कैंप भी लगाएंगे यानि समर वैकेशन में वो आर्ट के अंबेसडर रहेंगे. इन कैंप्स में पेंटिंग के साथ ही एप्लाइड आर्ट, म्यूरल, सेरामिक, पॉटरी, ग्राफिक्स जैसी कला की विधाएं सीखने को मिलती हैं. हर स्टेट में वहां की ललित कला एकेडमी का कैंप लगता है. मौका होता है सीखने का. जिनमें कुछ भी फीस नहीं देनी होती और सर्टिफिकेट भी मिलता है. मुझे आगरा में एकेडमी का कैंप आर्गनाइज करने की जिम्मेदारी मिली थी. उस कैंप में हिस्सा लेने वाले इंटरमीडिएट के आठ-नौ बच्चों को मैं जानती हूं जिन्होंने ग्रेजुएशन में आर्ट को सब्जेक्ट के रूप में चुना और बीए फाइन आर्ट्स या बीएफए में एडमीशन लिया. उन्हीं में दो तो आज भी मेरे स्टूडेंट हैं. इन कैंप्स से इतना क्रेज डेवलप होता है कि इंजीनियरिंग-डॉक्टरी को करियर बनाने का फैसला कर चुके स्टूडेंट्स भी पहुंचते हैं. इसी क्रेज का नतीजा है कि बड़ी-छोटी कई यूनिवर्सिटीज ने सर्टिफिकेट कोर्स शुरू कर दिए हैं. यहां अन्य फैकल्टीज के स्टूडेंट एडमीशन लेते हैं. सालभर सीखने के बाद उनका एग्जाम लिया जाता है. फिर सर्टिफिकेट मिलता है. इन कोर्सेज में यह जरूरी नहीं कि आप आर्ट के ही स्टूडेंट हों. आश्चर्य तब होता है जब बीटेक और एमबीबीएस के स्टूडेंट अपनी कठिन पढ़ाई के साथ ही आर्ट के इंट्रेस्टिंग पीरिएड के लिए समय निकालते हैं. मतलब साफ है कि यह कैंप गर्मियों का असर कम करने के साथ ही कई नई शुरुआतों की नींव डाल रहे हैं.

कृपया मेरा यह आर्टिकल यहां भी पढ़ें:-
http://inext.co.in/epaper/inextDefault.aspx?pageno=12&editioncode=1&edate=5/11/2010

6 comments:

Udan Tashtari said...

सही कहा..अच्छा आलेख!


एक अपील:

विवादकर्ता की कुछ मजबूरियाँ रही होंगी अतः उन्हें क्षमा करते हुए विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

-समीर लाल ’समीर’

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सही जानकारी दी है आपने!

Rohit Singh said...

वाह पढ़कर लग रहा है कि दोबार से छात्र बन जाएं ....पर क्या करें.....छुट्टी का मतलब पेंडिंग काम को निपटाना ही रह गया है..पता नहीं कहां फंस गया....कहां तो सोचा था कि देश का भ्रमण करता रहूंगा....खैर आपने छुटि्टयों की याद दिलाई ......आपका धन्यवाद....जहां तक तालिबान की बात है..वो भारत के लिए मुसीबत बना रहेगा...क्योंकि ये उस जगह पर रहता है जहां से पिछले 2000 साल से भारत पर कोई न कोई आक्रमण होता रहा है. जब भी हमारा ध्यान उधर से हटा हमने मार खाई..उम्मीद करता हूं कि हमारी सरकार सो नहीं रही होगी..और तैयारि हमेशा चलती रहती होगी..

VICHAAR SHOONYA said...

bahut badiya alekh.kya upar lage chitr apne hi banaye hain? vo bhi bahut sundar hainn.

Rajeysha said...

जीवन उम्र भर सीखना है, जो रूका वो जि‍न्‍दा नहीं है।

संजय पाराशर said...

काफी लेट पड़ा आपका लेख अब तो बारिश प्रारंभ हो गई.... अच्छा लेख ...