
इंस्टॉलेशन भी इसी रचनात्मकता का नतीजा है। कला की आर्ट की नई परिभाषा से ही पैदा हुए इंस्टॉलेशन में आर्टिस्ट वीडियो, पेंटिंग और स्कल्पचर आर्ट को मिला देता है। वह कुछ भी दिखा सकता है झोपड़ी, बर्तन, कारें, साइकिल लेकिन इनके म़ॉडल नहीं बल्कि वास्तविक वस्तुएं यानि असली झोपड़ी या कारें या कोई भी ऐसी वस्तु। जहां कई कलाएं मिल जाएं, वहां इंस्टॉलेशन आर्ट जन्म लेती है। कहा जाता है कि यह मीडियम उन लोगों के लिए ज्यादा मुफीद है जो अपनी बात को पेंटिंग या स्कल्पचर में बेहतर तरीके से नहीं कर पाते। लंदन के एक शॉपिंग सेंटर में आर्ट के लिए करीब पांच सौ लोग न्यूड हो गए। न्यूयॉर्क के आर्टिस्ट स्पेन्सर ट्यूनिक के इस इंस्टॉलेशन का मकसद था लोगों को दिखाना कि हम जो चाहें करें तो तनावभरे जीवन को अलविदा कहा जा सकता है। इनमें ज्यादातर लोग युवा थे। इसी तरह पांच से 95 साल की उम्र के 240 लोग मूर्तिकार एंथनी गोर्मली के लिए अपने शरीर को एक प्लास्टिक की पतली चादर से लपेटने को तैयार हो गए थे। प्रसिद्ध कलाकार मकबूल फिदा हुसैन भी सिर्फ कागज ही कागज बिखेरकर श्वेतांबरी नामक इंस्टॉलेशन बना चुके हैं। विवान सुंदरम तो इंस्टॉलेशन आर्ट में इतने रम गए कि पेंटिंग करना छोड़ ही दिया। विवान ने बाबरी मस्जिद के ढहने पर मेमोरियल नाम से स्कल्पचर और फोटोग्राफ्स का एक इंस्टॉलेशन बनाया। रणवीर सिंह कालेका, सुबोध गुप्ता और नलिनी मलानी भी पूरी तरह इसी फील्ड में उतर चुके हैं। दिल्ली में हुई एक प्रदर्शनी में आर्टिस्ट ने अपना इंस्टॉलेशन 'दादी मां का अचार' एक्जीबिट किया। इंस्टॉलेशन में तीन तलों की मेज पर शहरी दुनिया की चीजें बॉक्स, सेलफोन, कंप्यूटर आदि को एक बोतल में बंद कर यह संदेश दिया गया कि आज का जीवन पूरी तरह मशीनों और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों में उलझ चुका है। एक अन्य इंस्टॉलेशन में एक टेंट है जिसमें मधुमक्खियों का छत्ता और एक लैपटॉप है, एक आदमी लेटकर पुस्तक पढ़ रहा है। मंशा है जीने का अंदाज दिखाने की। मधुमक्खी का छत्ता एकजुटता और संयुक्त परिवार के लाभ बताता है जबकि लैपटॉप अकेलेपन को दर्शा रहा है। बड़े शहरों में बढ़ती भीड़ की परेशानी दिखाने के लिए एक आर्टिस्ट ने इंस्टॉलेशन बनाया जिसमें मशीनें हैं, और हैं पसीने से तरबतर लोग। इनमें लगी बहुत सी चीज़ें घूमती हैं और तरह-तरह की आवाजें निकालती हैं तो लगता है जैसे शहर का कोई हिस्सा जीवंत हो उठा है। शोर से परेशान आदमी के कान कागज लगाकर बंद कर दिए गए हैं। दिल्ली में ऐसी ही एक और एग्जीबिशन लगाने वाले एक आर्टिस्ट का कहना था कि तमाम चीजों के आपस में मिलने से कला का कैनवस बड़ा हो गया है और चीजें आपस में सिकुड़ गई हैं। हम ऐसे समय में जी रहे हैं, जहां दुनिया कभी भी ठप हो जाए। ऐसे में हम 19वीं सदी के रोमांस को लेकर क्यों जीएं? बिल्कुल सच है यह। आर्ट ने तो वैसे भी अनूठी और रोचक दुनिया रचने का कारनामा कई बार कर दिखाया है और इस बार वह हकीकत से रूबरू कराने का काम बखूबी कर रही है। नई पीढ़ी के कलाकारों क रुचि और कलाप्रेमियों के रुझान से तो यही लगता है।
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