हर आर्टिस्ट के लिए यह जरूरी है कि वह शरीर के हर अंग की बनावट को जाने. फ्रंट, बैक, साइड पोश्चर, बैठे, खड़े और लेटे की पोजीशन की डीप स्टडी किए बिना फिगरेटिव पेंटिंग की कल्पना मेरी समझ से परे है. एनाटॉमी स्टडी करने के लिए स्टूडेंट्स को किताबों का सहारा लेना पड़ता है क्योंकि इंडिया में न्यूड मॉडल उपलब्ध नहीं हो पाते. आर्टिस्ट का फंडामेंटल बेस ही यही है कि जैसे वह नेचर की प्रत्येक चीज को आब्जर्व करता है, वैसे ही नेचर के ही पार्ट मेल-फीमेल को बनाना सीखे. स्टूडेंट लाइफ में जब मैं न्यूड फिगर बनाती थी, तब अपने ही घर में मुझे लगता था कि सभी अच्छा फील नहीं कर रहे. हर सीखने वाले स्टूडेंट के साथ ऐसा ही होता होगा. न्यूड स्टडी करने के लिए किताबों का ही सहारा लेना पड़ता है चाहें वो मार्केट से ली जाएं या लाइब्रेरी से. स्टूडेंट को यह किताबें छिपाकर रखनी पड़ती हैं. डर ऐसा होता है कि कोई क्राइम कर रहा हो. मॉडल न्यूड हो या कपड़ों में, आर्टिस्ट के लिए महज एक आब्जेक्ट है. उसी तरह जैसे सामने कोई चीज रखी हो और उसका उसे चित्रांकन करना हो.
प्रसव के समय छटपटाती स्त्री को कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसका डॉक्टर मेल है या फीमेल. इस अर्द्धनग्न अवस्था में उसे तमाम लोग देखते हैं. यह नए सृजन के लिए होता है इसलिये उसमें कहीं वल्गैरिटी नहीं मानी जाती. नवजात का स्वागत उल्लास और उमंग से किया जाता है लेकिन जब यही सृजन एक आर्टिस्ट करता है जिसमें उसकी कलाकृति का फिगर यदि न्यूड है तो विवाद शुरू हो जाता है. कला के कद्रदान तो एप्रीशियेट करते हैं, लेकिन सवाल उनमें से भी कुछ के होते हैं. अलग बात है कि पेंटिंग देखने वाले की मानसिकता कैसी है. कुछ लोग तो बुर्के में पूरी तरह से ढंकी महिला को भी जैसे किसी अलग किस्म की अपनी पारदर्शी आंखों से न्यूड देख लेते हैं. कलाकारों के बारे में एक आम टेंडेंसी है कि यदि मेल आर्टिस्ट कोई फीमेल न्यूड बना रहा है तो जरूर अपनी पत्नी या प्रेमिका को मॉडल के रूप में यूज कर रहा होगा और फीमेल आर्टिस्ट ऐसा न्यूड़ फिगर बना रही है तो वह अपना ही फिगर बना रही होगी. फिर उस फीमेल आर्टिस्ट को देखने का नजरिया ही बदल जाता है.
उन्हें इस तरह के कमेंट्स का सामना करना पड़ता है. कुछ तो दबे-छिपे पूछ भी लेते हैं कि क्या आपने खुद को पेंट किया है. जयशंकर प्रसाद की कामायनी पर पेंटिंग करने के दौरान जब मैंने श्रद्धा और मनु को कैनवस पर उतारा तो मुझे लगा कि कपड़ों के बिना दोनों पात्रों को ज्यादा बेहतर अभिव्यक्त किया जा सकता है. ग्वालियर में इस सीरीज की पेंटिंग्स की एक्जीबिशन पर मैंने खूब हंगामा झेला. स्त्री होकर भी एक स्त्री को मैंने इस रूप में क्यों बनाया, यह सवाल मुझे पूछा गया. मैं परेशान और दुखी थी. एक कट्टरपंथी संगठन के लोग इन्हें नष्ट करने की धमकी दे रहे थे. हजारों-लाखों आर्टिस्ट न्यूड पेंटिंग करते हैं, मैंने कुछ नया नहीं किया था. कला हो या साहित्य या कोई और फील्ड, महिलाओं का हाल एक ही है. वो कुछ अलग करेंगी तो निश्चित रूप से आलोचनाओं में घेरी जाएंगी. और शायद यही वजह है कि महिला कलाकार पुरुषों से आगे नहीं निकल पातीं. यहां मैं यह भी बताना जरूरी समझती हूं कि कला की शिक्षा लेने वालों में लड़कों से ज्यादा लड़कियां होती हैं. यह मुद्दा इतना आसान नहीं कि जल्दी सिमट जाए लेकिन विरोध की परवाह किए बगैर महिला कलाकार अपने रास्ते पर चलती रहीं तो सफलता मिलना तय है. साथ ही मुझे लगता है कि आर्ट एंड लिट्रेचर के प्रति समझ, संवेदना और खुले दिमाग की जरूरत भी है.
प्रसव के समय छटपटाती स्त्री को कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसका डॉक्टर मेल है या फीमेल. इस अर्द्धनग्न अवस्था में उसे तमाम लोग देखते हैं. यह नए सृजन के लिए होता है इसलिये उसमें कहीं वल्गैरिटी नहीं मानी जाती. नवजात का स्वागत उल्लास और उमंग से किया जाता है लेकिन जब यही सृजन एक आर्टिस्ट करता है जिसमें उसकी कलाकृति का फिगर यदि न्यूड है तो विवाद शुरू हो जाता है. कला के कद्रदान तो एप्रीशियेट करते हैं, लेकिन सवाल उनमें से भी कुछ के होते हैं. अलग बात है कि पेंटिंग देखने वाले की मानसिकता कैसी है. कुछ लोग तो बुर्के में पूरी तरह से ढंकी महिला को भी जैसे किसी अलग किस्म की अपनी पारदर्शी आंखों से न्यूड देख लेते हैं. कलाकारों के बारे में एक आम टेंडेंसी है कि यदि मेल आर्टिस्ट कोई फीमेल न्यूड बना रहा है तो जरूर अपनी पत्नी या प्रेमिका को मॉडल के रूप में यूज कर रहा होगा और फीमेल आर्टिस्ट ऐसा न्यूड़ फिगर बना रही है तो वह अपना ही फिगर बना रही होगी. फिर उस फीमेल आर्टिस्ट को देखने का नजरिया ही बदल जाता है.
उन्हें इस तरह के कमेंट्स का सामना करना पड़ता है. कुछ तो दबे-छिपे पूछ भी लेते हैं कि क्या आपने खुद को पेंट किया है. जयशंकर प्रसाद की कामायनी पर पेंटिंग करने के दौरान जब मैंने श्रद्धा और मनु को कैनवस पर उतारा तो मुझे लगा कि कपड़ों के बिना दोनों पात्रों को ज्यादा बेहतर अभिव्यक्त किया जा सकता है. ग्वालियर में इस सीरीज की पेंटिंग्स की एक्जीबिशन पर मैंने खूब हंगामा झेला. स्त्री होकर भी एक स्त्री को मैंने इस रूप में क्यों बनाया, यह सवाल मुझे पूछा गया. मैं परेशान और दुखी थी. एक कट्टरपंथी संगठन के लोग इन्हें नष्ट करने की धमकी दे रहे थे. हजारों-लाखों आर्टिस्ट न्यूड पेंटिंग करते हैं, मैंने कुछ नया नहीं किया था. कला हो या साहित्य या कोई और फील्ड, महिलाओं का हाल एक ही है. वो कुछ अलग करेंगी तो निश्चित रूप से आलोचनाओं में घेरी जाएंगी. और शायद यही वजह है कि महिला कलाकार पुरुषों से आगे नहीं निकल पातीं. यहां मैं यह भी बताना जरूरी समझती हूं कि कला की शिक्षा लेने वालों में लड़कों से ज्यादा लड़कियां होती हैं. यह मुद्दा इतना आसान नहीं कि जल्दी सिमट जाए लेकिन विरोध की परवाह किए बगैर महिला कलाकार अपने रास्ते पर चलती रहीं तो सफलता मिलना तय है. साथ ही मुझे लगता है कि आर्ट एंड लिट्रेचर के प्रति समझ, संवेदना और खुले दिमाग की जरूरत भी है.
9 comments:
आपने एक बहुत सोचनीय प्रसंग उठाया है जो भी आपने लिखा है स:अक्षर सही और वाजिब लिखा है ! कलाकार के मन में उठती लहरों से अवगत करवाया है | इतनी जबरदस्त बात कही है जो यदि समाज के हर वर्ग के लोगों तक पहुंचे तो शायद अपना जोरदार असर छोड़ेगी!
bahut hi achcha laga aapka yeh lekh....
aaj ke I-Next akhbaar mein prakaashit hone ke liye bahut bahut badhai.....
आर्ट और लिटरेचर के प्रति वाकई में खुले दिल और दिमाग की जरूरत है....एक कलाकार को परफेक्शन तक जाने उसे अपने तरीके से काम करने की पूरी आजादी की गारंटी तो चाहिये ही, साथ उसकी कृति का आकलन भी आब्जेक्टिव तरीके से होना चाहिये...यह अलग बात है कि कलाकार अपने काम के दौरान पूरी तरह से सबजेक्टिव होता है...उत्तमा जी आपने बहुत ही साहस के साथ अपनी बातों को रखा है, आप अपना काम करती रहे, विरोधियों से दुखी होने की जरूरत नहीं है।
आपने काफी महत्वपुर्ण मुद्दा उठाया है । आज लोग समाज में फैली उन बुराइयों को छुपाना कहते है जिन्हें हम सभी जानते है , लेकिन यदि कोई अपने कला का प्रदर्शन करता है तो उसे अश्लील बता कर रोकने की मांग की जाती है या फ़िर उससे ऐसे सवाल किए जाते है की वो अपनी कला से विमुख हो जाता है आप मेरे ब्लॉग पर आमंत्रित है http://mideabahes.blogspot.com/
उत्तमाजी,
बहुत गंभीर और दिलचस्प लेख।
संस्कृतिक लठैतों की दिक्कत यह है कि वे खुद को आईने के समक्ष नंगे होते देख तो बहुत प्रसन्न होते हैं मगर अगर कहीं स्त्री ऐसा करने लग जाए तो उनको मिरचें लग जाती हैं।
इन लठैतों की निगाह में फिदा हुसैन बहुत बड़े और महान चित्रकार हैं।
अभी कुछ देर पहले ही अश्लीलता औक शालीनता पर एक लेख पढ़ा था। बात यहाँ भी वही है कि एक व्यक्ति विशेष का नज़रिया कैसा है। अगर आपकी सोच ही ग़लत हो तो आपको सबकुछ ग़लत ही लगेगा। परेशानी ये है कि अधिकतर की सोच ही ग़लत है जोकि तेज़ी में प्रसारित हो रही हैं।
" bahut hi gambhir prashan uthaya hai aapne ...ek shandar aalekh "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
भाई लोगो यदि व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, कला स्वेच्छा, आदि ही ठीक है तो सरकार काहे बनाते हो,ट्रेफ़िक-रूल क्यों?, कपडे क्यों पहनें? यदि किसी को ( अगर ५०% को) अच्छा लगे तो वे नन्गे रहना प्रारम्भ करदें, सडक पर दायीं तरफ़ ही चलें--क्या होगा सोचो तो, आखिर आप क्यों न्यूड पेन्टिन्ग करना चाहते हैं, सभी ने नन्गे लोगो को देखा है, देखते हैं रोज़ाना अपने बिस्तर पर, तो नन्गेशरीर में क्या नई बात आप दिखलाना चाहते हैं? यदि दिखाना ही है तो कलाकार, पेन्टर अपनी ही नन्गी तस्वीर दिखाये । दिल को कन्ट्रोल करने के लिये ही तो ईशवर ने दिमाग बनाया है।
----क्या-क्या मूर्खता की बातें व विचार लिखते रहते हैं, विना सोचे समझे, अन्ग्रेज़ों के उधार लिये दिमाग से।
बहुत अच्छा लगा आपको पढना और आपसे दोस्ती करना..आपको अभी ठीक से नहीं जाना पर पढ़ कर लगता है की जैसे मेरे ही विचार आपकी पोस्ट में उड़ेल दिए गए हो...
मुझे भी स्केचिंग का बहुत शोक है.. पर अब नाजाने क्यों कुछ बनाता ही नहीं हू... हाँ दूसरों को बनाते देखना बहुत अच्छा लगता है...
उम्मीद करता हूँ की अगर कभी आपकी प्रदर्शनी दिल्ली में हो तो मुझे भी इसे देखने का सौभाग्य मिलेगा....
आप लिखती भी बहुत अच्छा है...
जारी रखिये...
मीत
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